🙏श्रद्धासुमन राष्ट्रीय कवि प्रदीप जी के जन्मदिवस पर कोटिश नमन व श्रद्धाँजलि ।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी नें जिस किशोर को "प्रदीप" नाम से आशीर्वाद दिया था, उसकी काव्य प्रतिभा के बारे में, माधुरी (लखनऊ की पत्रिका) १९३८के अंक मे लिखा - "आज जितने कवियों का प्रकाश हिन्दी जगत में फैला हुआ है, उनमें 'प्रदीप' का अत्यंत उज्जवल और स्निग्ध है। हिन्दी के हृदय से प्रदीप की दीपक रागिनी कोयल और पपीहे के स्वर को भी परास्त कर चुकी है।"
६ फरवरी १९१५ को मध्य प्रदेश के उज्जैन के बड़नगर में जन्मे रामचन्द्र नारायण जी द्विवेदी के "प्रदीप" नाम को भारतीय सिनेमा के अग्रगण्य फिल्म निर्देशक एवं अभिनेता हिमांशु राय के परामर्श पर मूल नाम के स्थान पर "कवि प्रदीप " ही प्रख्यात हो गया।
हमें सदा ऐसा लगता है कि हमारी पीढ़ी उनके गीतों को सुनकर - गाकर - गुनगुना कर बड़ी हुई है।आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झाँकी हिंदुस्तान की,
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की,
वंदेमातरम्!वंदेमातरम्! वंदेमातरम्! वंदेमातरम्!!बचपन से "कवि प्रदीप" के इस गीत को गाया.... इस गीत नें बेपरवाह बचपन की मासूम आँखों में भारतीय इतिहास के वीरों के शोर्यपूर्ण चित्रों को इस तरह सजीव किया कि राष्ट्रीय अस्मिता हमारे लिए चरित्र का मुख्य अंग बन गई...भारतीय इतिहास को जानने की ललक हमारी जागी उनके - -
देशभक्ति की चिंगारी को उनके बोलों नें सदा ही हवा देने का कार्य किया ।
चल चल रे नौजवान",“तेरे फूलों से भी प्यार", "हम लाये हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के ","चलो चलें माँ सपनों के गाँव”, "तेरे द्वार खड़ा भगवान", "दूसरो का दुखड़ा दूर करनेवाले”, "तुंनक तुंनक बोले रे मेरा इकतारा", "पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द ना जाने कोय", "कोई लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे ना रे भाई","नई उम्र की कलियों तुमको देख रही दुनिया सारी", "बिगुल बज रहा आज़ादी का", "सांवरिया रे अपनी मीरा को भूल न जाना", "न जाने कहाँ तुम थे", "सूरज रे जलते रहना","चने जोर गरम बाबू""दूर हटो ऐ दुनियावालो हिंदुस्तान हमारा है""रामभरोसे मेरी गाड़ी”, "ऊपर गगन विशाल", "किसकी किस्मत में क्या लिखा","कान्हा बजाए बंसरी और ग्वाले बजाएं मंजीरे","जय जय राम रघुराई","देख तेरे संसार की हालत - - कितना बदल गया इंसान","टूट गई है माला मोती बिखर गए ",
" इकतारा","जन्मभूमि माँ ", "भारत के लिए भगवान का एक वरदान है गंगा”, "मैं तो आरती उतारूँ", "यहाँ वहां जहाँ तहां है संतोषी माँ", "ऐ मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी "आदि उनके गीत मानवीय भावनाओं की गहराई से उपजे थे इसलिए वे कालजयी हैं।
ब्रिटिश शासन में 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है' लिखकर अपनी कलम के लिए सत्ता का कोप भाजन बनने वाले प्रदीप जी अपने देशभक्ति गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों "की रचना के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने १९६२ के भारत-चीन युद्ध के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। सुर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री की उपस्थिति में २६ जनवरी १९६३को दिल्ली के रामलीला मैदान में जब सीधा प्रसारण किया गया तब हर आँख नम हो गई थी। कवि प्रदीप ने इस गीत का राजस्व “युद्ध विधवा कोष” में जमा करने की अपील की। मुंबई उच्च न्यायालय ने २५ अगस्त २००५ को संगीत कंपनी एच.एम.वी को इस कोष में अग्रिम रूप से दस लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया। अब यह गीत हमारे गणतंत्र दिवस के समापन समारोह में शूरवीर शहीदों की स्मृति में हर बार भारत कोकिला लता जी के सुरों में ढलकर सभी भारतवंशियों की आँखें नम कर देता है।
अनुपम कालजयी गीतकार, गायक, अपनी माटी से जुड़े भारतमाता के सच्चे सपूत "कवि प्रदीप जी" के जन्म दिवस पर भावभीना नमन व श्रद्धासुमन।
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