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शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

मानवीय मूल्यों के पोषक संत स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी का अवतरण दिवस।


🌷भारतीय सांस्कृतिक एकात्मता के पुरोधा स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के चरणकमलों में कोटि-कोटि नमन एवं श्रद्धासुमन 🙏
मानवीय मूल्यों के पोषक संत  स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी का जन्म फाल्गुन शुक्ल की द्वितीया तिथि (१८ फ़रवरी १८३६) को बंगाल प्रांत स्थित कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। पिताजी के नाम खुदीराम व माताजी के नाम चन्द्रमणि देवी था।
उनके परमप्रिय शिष्य स्वामी विवेकानंद जी ने समग्र जगत को रामकृष्ण जी के विचारों से अवगत करवाया। १५ अगस्त १८८६ को स्वामी जी ब्रह्मलीन हो गए लेकिन इनके विचारों का प्रकाश आज भी विश्व में प्रतिभासित हो रहे हैं। 
कल्पनातीत अनासक्त सिद्ध संत स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के विषय में नोबल पुरस्कार से सम्मानित सुविख्यात फ्रैंच साहित्यकार रोम्या रोलां नें अक्तूबर १८८२ में, अपनी पुस्तक "रामकृष्ण परमहंस " में उनके विषय में लिखा था," इस अगम्य व्यक्तित्व का स्वरूप क्या है ?
परमेश्वर की संवेदना है या प्रत्यक्ष पदार्पण ? भारतीय संस्कृति पर मेरा पूर्ण विश्वास है। मैं श्री रामकृष्ण को अपना अंतरंग मानता हूं। मैं उन्हें उनके शिष्यों तथा भक्तों की तरह भगवान नहीं मानता। मैं उनमें महामानव अर्थात ईश्वरीय गुणों की अधिकता की स्थिति मानता हूँ। "
स्वामी जी कहते थे," जीवन का विश्लेषण करना रोक दो। यह जीवन को और जटिल बनाएगी।अपना जीवन जियो। "
आज श्री रामकृष्ण परमहंस जी के प्रिय शिष्य स्वामी विवेकानंद जी की जिज्ञासा  से उपजे प्रश्नोत्तर में से, बचपन से अपने सर्वाधिक प्रिय संवाद के द्वारा मैं स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के पावन चरणों में विनम्र श्रद्धाँजलि अर्पित करती हूँ।।
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स्वामी विवेकानंद : अच्छे लोग इस जगत में हमेशा दुःख क्यों पाते हैं ?
रामकृष्ण परमहंस : हीरा रगड़े जाने पर ही चमकता है। सोने को शुद्ध होने के लिए आग में तपना पड़ता है। अच्छे लोग दुःख नहीं पाते बल्कि परीक्षाओं से गुजरते हैं। इस अनुभव से उनका जीवन बेहतर होता है, बेकार नहीं होता।
स्वामी विवेकानंद : आपका मतलब है कि ऐसा अनुभव उपयोगी होता है ? 
रामकृष्ण परमहंस : हां,हर प्रकार से अनुभव एक कठोर शिक्षक की तरह है। पहले वह परीक्षा लेता है और फिर सीख देता है। 

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