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बुधवार, 5 जून 2024

वट-सावित्री ।

🌳🙏वट-सावित्री पूजा  🌷🌷🌷🌷
स्कंद पुराण के अनुसार एक बार माता पार्वती ने जिज्ञासा  प्रकट की - 
"हे देवताओं के भी देवता, जगत के पति शंकर भगवान, प्रभासक्षेत्र में स्थित ब्रह्माजी की प्रिया जो सावित्री देवी हैं, उनका चरित्र आप मुझसे कहिए। जो उनके व्रत का महात्म्य हो और उनके संबंध का इतिहास हो एवं जो स्त्रियों के पतिव्रत्य को देने वाला, सौभाग्यदायक और महान उदय करने वाला हो।
माँ भवानी की जिज्ञासा शांत करने के लिए आदिदेव भगवान शंकर ने कहा कि, हे महादेवी, प्रभासक्षेत्र में स्थित सावित्री के असाधारण चरित्र को मैं तुमसे कहता हूं। हे माहेश्वरि! सावित्री-स्थल नामक स्थान में राजकन्या सावित्री ने इस उत्तम व्रत का पालन किया था।
प्राचीन काल में मद्रदेश में अश्वपति नाम के एक राजा राज करते थे। वह बड़े धर्मात्मा, ब्राह्मण भक्त, सत्यवादी और जितेंद्रिय थे। राजा को सब प्रकार का सुख था परंतु उन्हें कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने संतान प्राप्ति की कामना से अठारह वर्षों तक सावित्री देवी की कठोर तपस्या की। सावित्री देवी ने उन्हें एक तेजस्विनी कन्या की प्राप्ति का वर दिया।यथा समय राजा की बड़ी रानी के गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा। राजकन्या शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की भांति दिनों दिन बढने लगी। धीरे-धीरे उसने युवावस्था में प्रवेश किया। उसके मनमोहक रूप-लावण्य सभी को मुग्ध करता था। 
राजा ने एक दिन  अपनी शास्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण युवापुत्री सावित्री से कहा, ‘‘बेटी! अब तुम विवाह के योग्य हो गई हो इसलिए स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो।’’
पिता की आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य मंत्रियों व सखियों के साथ स्वर्ण रथ पर बैठ कर यात्रा के लिए निकली। कुछ दिनों तक ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों के तपोवनों और तीर्थों में भ्रमण करने के बाद अपने लिए वर का चुनाव कर वो राजमहल में लौट आई। राजभवन में अपने पिता के साथ देवर्षि नारद को बैठे देख कर उसनें उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया।महाराज अश्वपति ने सावित्री से उसकी यात्रा का समाचार पूछा। सावित्री ने कहा, ‘‘पिता जी! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान सर्वथा मेरे योग्य हैं। अत: मैंने मन से उन्हीं को अपना पति चुना है।’’
नारद जी सहसा चौंक उठे और बोले, ‘‘राजन! सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। सत्यवान के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिए गए हैं, वह वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अंधे हो चुके हैं। सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है।’’
नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गए। उन्होंने सावित्री से कहा, ‘‘बेटी! अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो।’’
सावित्री ने दृढ़ता से कहा, ‘‘पिताजी! सत्यवान चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, धनी हों या निर्धन अब तो वही मेरे पति हैं। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया फिर मैं दूसरे पुरुष का वरण कैसे कर सकती हूं?’’
सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया।विवाह के बाद वह राज वैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करने के लिए वन में ही रहने लगी।धीरे-धीरे  सत्यवान की मृत्यु का निश्चित समय भी निकट आ रहा था। सावित्री ने उसके चार दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था। पति एवं सास-ससुर की आज्ञा से सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-फूल और लकड़ी लेने के लिए गई। अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान के सिर में भयानक दर्द होने लगा और वह पेड़ से नीचे उतरकर पत्नी की गोद में सिर रख कर लेट गया।
उस समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरुष दिखाई पड़ा। वह साक्षात यमराज थे। उन्होंने सावित्री से कहा, ‘‘तू पतिव्रता है। तेरे पति की आयु समाप्त हो गई है। मैं इसे लेने आया हूं।’’
इतना कह कर यमराज ने सत्यवान के शरीर से सूक्ष्म जीव को निकाला और उसे लेकर वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिए। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चल दी।उसकी दृढ़ संकल्प शक्ति को देख कर यमराज ने उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। सा‌वित्री ने प्रथम वर मांगते हुए कहा कि मेरे सास ससुर वनवासी और अंधे है इसलिए आप उनकी आंखों की रोशनी लौटा दीजिए, जिससे वे दोबारा इस संसार को देख सकें। यमराज ने उन्हें ये वरदान दे दिया और सत्यवान के प्राण फिर लेकर जाने लगे। सावित्री  फिर उनके पीछे चलने लगी। तब यमराज ने कहा कि देवी आप लौट जाइए इस मार्ग पर कोई भी मनुष्य नहीं चल सकता।
यमराज की ये बात सुन कर सावित्री ने कहा कि भगवन अपने पति का अनुसरण करना  मेरा कर्तव्य है। सावित्री की धर्म परायणता से यमराज प्रसन्न हुए उन्होंने सावित्री से पति के प्राणों के अतिरिक्त एक और वरदान मांगने के लिए कहा। सावित्री ने कहा कि मेरे श्वसुर एक राजा थे, शत्रुओं ने उनका राज पाठ छीन लिया। इसलिए वे वन में भटक रहे हैं। आप उन्हें उनका राज्य लौटा दीजिए। यमराज ने सावित्री को ये वरदान भी दे दिया।
वरदान पाने के बाद भी सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलते हुए यमलोक पहुंच गई।  यमराज ने सावित्री के पतिप्रेम और धर्म परायणता की प्रशंसा करते हुए, पति के जीवनदान के अतिरिक्त, तीसरा वरदान मांगने के लिए कहा सावित्री ने अपने तीसरे वरदान में संतानों की माता बनना मांगा और जब यम ने उन्हें ये वरदान दिया तो सावित्री ने कहा कि वे पतिव्रता स्‍त्री है और बिना पति के मां नहीं बन सकती।
सावित्री की बुद्धिमत्तापूर्ण और धर्मयुक्त बातें सुनकर यमराज का हृदय द्रवित हो गया। यमराज नें सावित्री को उनके सास-ससुर की आंखें अच्छी होने के साथ राज्य प्राप्ति का वर, एवं स्वयं के लिए संतानवती होने के आशीर्वाद के साथ अखंड सौभाग्य का वरदान भी प्रदान किया।
इस दिन ही सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा से यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण व परिवार के लिए सुख समृद्धि वापस पाए थे। इस कारण से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि जो स्त्री सावित्री के समान यह व्रत करती है उसके पति व परिवार पर भी आनेवाले सभी संकट वट सावित्री की कथा सुनने और व्रत - पूजन से दूर होते हैं।
 सावित्री पूजा वाले दिन वटवृक्ष की पूजा की जाती है।भारतीय संस्कृति में वैदिक युग से इस पावन वृक्ष में सृजन-पोषण-संहार के प्रतीक ब्रह्मा-विष्णु-महेश का निवास मान कर इसके संरक्षण व संवर्द्धन पर बल देते हुए इसे पूज्य माना गया है।
मेरी संकल्पनाओं में, "वट सावित्री व्रत" मानव की दृढ़ इच्छाशक्ति से किए कर्म के सम्मुख विधाता का लेख बदलने की क्षमताओं की स्मृति का पर्व होने के साथ-साथ पर्यावरण के सम्मान को भी निरंतरता देता है। ये हम भारतीयों की परंपरागत संस्कृति की अमूल्य विरासत है🌷🌷 शुभेच्छाओं सहित 🙏

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