🇮🇳भारतीय सांस्कृतिक एकात्मता का संदेश देते हमारे पर्व : स्कन्द षष्ठी।
स्कंदपुराण के अनुसार भगवान शिव के दिए वरदान के कारण दैत्यराज तारकासुर अत्यंत शक्तिशाली हुआ क्योंकि वरदान के अनुसार केवल शिवपुत्र ही उसका वध कर सकता था। शिवपत्नी सती, (अपने पिता दक्ष प्रजापति के शिव-द्रोह के अपमान के कारण)आत्माहुति देने के कारण भगवान शिव को एकाकी रह गए थे। इन स्थितियों के परिणामस्वरूप तारकासुर के अत्याचार से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था।शिवपुत्र के हाथों मारे जाने के वरदान को ध्यान में रखकर सारे देव समाज ने पहले प्रेम व सौंदर्य के देवता से सहायता ली। मदन-दहन के बाद देवर्षि नारद जी नें हिमाचल पुत्री उमा को शिवभक्ति कर पति रूप में पाने के लिए मार्गदर्शन किया। शिव-विवाह के पश्चात देवों नें कैलाश जाकर भगवान शिव से पुत्र प्राप्ति हेतु विनती की।
आदिदेव शिव एवं भगवती पार्वती जी के तेजपुंज को दैत्यों से सुरक्षित रखने के लिए गंगादेवी को दिया। देवी गंगा उस दिव्य अंश को लेकर शरवण वन में लाकर स्थापित कर दिया। यह दिव्य अंश छह भागों में विभाजित हो गया था। भगवान शिव के शरीर से उत्पन्न तेज रूपी वीर्य के उन दिव्य अंशों से सुकोमल शिशु का जन्म हुआ। उस वन में विहार करती छह कृतिका कन्याओं की दृष्टि जब उन बालकों पर पडी तब उनके मन में उन बालकों के प्रति मातृत्व भाव जागा। बालक को लेकर वे कृत्तिका लोक चली गईं। वहीं उनका पालन - पोषण हुआ। जब इस घटनाक्रम के बारे में नारद जी ने माता पार्वती को बताया तब वे अपने पुत्र से मिलने के लिए व्याकुल होकर कृतिका - लोक पहुंची। माँ पार्वती ने अपने पुत्र को देखा तब वो मातृत्व भाव से भावुक हो उठीं। भगवान शिव-पार्वती नें कृत्तिकाओं को पुत्र-जन्म की संपूर्ण कथा सुनाई और अपने पुत्र को लेकर कैलाश वापस आ गए। कृतिकाओं के द्वारा पालित होने के कारण,बालक का नाम कार्तिकेय पड़ गया। कार्तिकेय को देवसेना का सेनापति नियुक्त होने पर , स्कंद नें देवासुर संग्राम का नेतृत्व कर राक्षस तारकासुर का संहार किया।
ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि के भगवान कार्तिकेय के अवतरण का पावन दिवस है। सनातन धार्मिक मान्यता के अनुसार स्कन्द षष्ठी के दिन भगवान कार्त्तिकेय का पूजन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में आ रही समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है।भारतीय महिलाएं संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए स्कंदषष्ठी व्रत रखती हैं। स्कन्द , कार्तिकेय, सुब्रमण्य और मुरुगन के नामों से पुकारे जाने वाले शिव-पार्वती पुत्र को समर्पित पावन अनुष्ठान स्कंद षष्ठी व्रत का पालन सौभाग्य, जीवन की चुनौतियों पर विजय, आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और आंतरिक दृढ़ता प्रदान करने वाला माना जाता है। भगवान मुरुगन का आशीर्वाद सर्वत्र सकारात्मक ऊर्जा और शुभता लाए।
🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🙏
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें