श्रावणी घटा की साझी चुनर ओढ़,
फ़िक्रों को भूल, बारिशों के पानी में,
आओ फिर बेपरवाह,भीगेंहम-तुम !!
कलरव भरी नीम की पत्तियों के, वितान से ढलकती नन्ही बूंदों को,
पलकों से चुपचाप छू लें हम-तुम !!
कचनार की धानी छांव तले छुप,
बोतलब्रश(चील) के मोतियों की,
हरी लड़ियों को निहारें हम-तुम !!
कागज़ों की रंगीन किश्तियों पर,
सपनों को बिठा,हाथों से लहरें उठा, आज फिर दूर तक तैराएँ हम-तुम !!
सावन के इन धुंधले से उजालों में,
आओ बचपन की गालियों में जमा,
पानी के छपाके उड़ाएँ हम-तुम !!
रिमझिम के भीगे-भीगे सुरों में डूब,
गरम चाय-पकौड़ों के संग आज
फिर बेवजह ही बतियाएँ हम तुम !!🌲🌧️🌧️🌧️🌧️🌧️🌧️🌨️🌧️🌳
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें