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मंगलवार, 24 जून 2025

श्रीशैलम का उमा-महेश्वर मंदिर।


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🔱वर्ष २०२१ में जब हम श्रीशैलम के दर्शन के लिए गए तब महाशिवरात्रि का महापर्व ११ मार्च को था। हिमाचल प्रदेश की पुत्री होने  के कारण, शिव-शक्ति की पूजा-अर्चना बचपन से हमारे संस्कारों व आस्था का अभिन्न अंग रहा है। हिमाचल प्रदेश में शिवरात्रि सबसे बड़ा उत्सव है
वहां महीने भर पहले से शिव - पार्वती विवाह की शुरुआत हो जाती है और आंचड़ियों (पारंपरिक भक्ति गीत) की ध्वनि वातावरण को दिव्यता से भर जाता है। हैदराबाद से कार से श्रीशैलम जाते हुए १ मार्च को मार्ग में पीले वस्त्रों में 
शिवभक्तों को शिवनाम जपते हुए नंगे पांव श्रीशैलम की ओर बढ़ते देख कर हमें सुखद आश्चर्य हुआ। हमनें जाना कि यहां११ दिवसीय ब्रह्मोत्सवम मनाया जाता है। 
हम श्रीमल्लिकार्जुनम् ज्योतिर्लिंग व अक्क महादेवी जी की साधना गुफा के दर्शन हेतु उत्सुक थे। हमारे प्रश्नों व जिज्ञासाओं का उत्तर देते हुए ड्राइवर भय्या नें मार्ग में मसिगंडी, स्थानीय कुलदेवी तथा श्रीशैलम के उत्तर द्वार उमा-महेश्वरम् मंदिर के दर्शन का आग्रह जिस आत्मीयता से किया उसके कारण हम इसे स्वीकार करने को बाध्य थे। समस्त मार्ग पर, भक्तों की  मंडलियों के साथ मिलता रहा। 
महाशिवरात्रि के अवसर पर 
श्रीशैलम भगवान शिव और देवी पार्वती जी के विवाह समारोह के उल्लास से आनंद से परिपूर्ण था। 
श्रीशैलम सबसे प्रमुख क्षेत्रों में से एक है जहां भगवान शिव और पार्वती देवी ने भगवान मल्लिकार्जुन एवं भ्रमरांबिका देवी के रूप में अवतार लिया था। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर के लिए प्रसिद्ध  और हिंदुधर्म के शैव और शक्ति संप्रदायों के लिए पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है।
 🔱उमा महेश्वर मंदिर , जिसे महेश्वर स्वामी के नाम से भी जाना जाता है, भारत के तेलंगाना में भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर , सुरम्य नल्लमाला वन श्रृंखलाओं में स्थित है। हैदराबाद से लगभग १००किलोमीटर दूर हैदराबाद -श्रीशैलम राजमार्ग पर स्थित उमामहेश्वरम तीर्थम् को पावन श्रीशैलम का उत्तरी प्रवेशद्वार कहा जाता है। विश्वविख्यात द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से इसे एक स्वयम्भू माना जाता है। इस पवित्र स्थान का उल्लेख भारत के वैदिक ग्रंथों, पुराणों, शास्त्रों में मिलता है। ऐसी मान्यता है कि त्रेतायुग में श्रीराम जी नें श्रीशैलम में उमामहेश्वरम के दर्शन
किए थे।वर्तमान समय में भी  उमा-महेश्वर स्वामी के दर्शन के बिना श्रीशैलम की यात्रा अधूरी रहती है।
पहाड़ी के ऊपर चारों तरफ से विशाल पेड़ों से घिरे हुए इस मंदिर का सौंदर्य अलौकिक शांति देता है। दूर तक फैली पहाड़ों की श्रृंखलाएं मंदिर की पृष्ठभूमि का निर्माण करती हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में देवता प्राकृतिक रूप से बनी गुफा में स्थित हैं। इस मनभावन मंदिर पर पहाड़ियों से लगातार बहता पानी ऐसा आभास देता है मानो देवी गंगा यहाँ अपना पावन अँचल  से भक्तों को आश्रय दे रही हैं। 
यहां "पापनाशनम् कुंड" में, 
विशाल चट्टानों के नीचे से पानी निकलता रहता है।
विशाल चट्टानों के नीचे पूरे साल एक ही गति से पानी बहता रहता है। इस पानी को बहुत पवित्र माना जाता है। इसका आचमन आध्यात्मिक रूप से एक अप्रतिम अनुभव देने वाला है। 
उमामहेश्वर स्वामी मंदिर के निर्माण का इतिहास इसे दूसरी शताब्दी में चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल से जोड़ता है।
मैंने इस मंदिर की अलौकिक ऊर्जा का ऐसा अनुभव प्राप्त किया है जो उस समय मेरी आँखों से निरन्तर जलधारा के रूप में बहकर मेरे तन-मन को भिगो गई थी।उसअप्रतिम अविस्मरणीय क्षण में, मैं निशब्द जड़वत खड़ी थी और मंदिर के प्रधान पुजारी नें स्वयं आकर मेरे शीश पर ईश्वर का आशीर्वाद रखा।उनके "माँ प्रसादम्" शब्दों से हमारी तंद्रा टूटी पर अश्रुधारा नहीं रुकी। अपनी अद्भुत, अनिर्वचनीय अनुभूतियों को, शब्दों में बांधना हमारे लिए सम्भव नहीं है।बहुत देर तक पुजारी जी के कहने पर हम वहीं बैठे रहे। उसी आनंद से सराबोर हमनें "पापनाशनम् कुण्ड" के जल के सानिध्य को आत्मसात किया। - - - - संत पल्टू जी नें कहा ''पीउ को खोजन मैं गई, आपहु गई हिराय'' स्थिति ऐसी ही थी - - मगर मैं तो खोजने गई ही नहीं थी, फिर भी खुद खो गई !!!! - - - - नंगे पाँव ही लौट आई थी और पता भी नहीं चला----चेताया गया तो जाना !! 
अपने आराध्य की पावन ऊर्जा की स्मृतियाँ हमें आज भी भावविह्वल कर देती हैं। 
इस मंदिर में असंख्य भक्त अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए इस स्थान पर आते हैं और आनंददायी अनुभूतियों को अपने साथ ले जाते हैं। 

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