दक्षिण भारत में, अप्रतिम सांस्कृतिक वैभव को सहेजे शंख की आकृति वाले, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरे इस द्वीप "रामेश्वरम" की यह शंखाकार आकृति इसके धार्मिक और भौगोलिक महत्व का एक प्रमुख हिस्सा है।इसी रामेश्वरम में एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है- हनुमान तीर्थम ! रामनाथपुरम में खुले में स्थापित पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा मंदिर परिसर में स्थित है, । पांच मुख वाले अनूठे विग्रह में बीच में हनुमान जी का चेहरा है और अन्य चेहरे भगवान नरसिंह, आदिवराह, गरुड़ और हयग्रीव के हैं।
मंदिर के अंदर वे प्रसिद्ध "तैरते हुए पत्थर" भी रखे गए हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि रामायण काल में भगवान राम की वानर सेना ने राम सेतु बनाने के लिए इनका उपयोग किया था।
*पंचमुखी हनुमान जी* से सम्बन्धित आख्यान के अनुसार, लंकापति रावण के सभी योद्धा युद्धक्षेत्र में श्रीराम-लक्ष्मण के सम्मुख पराजित हो रहे थे।उस समय रावण ने अपने भाई अहिरावण से सहायता मांगी जो पाताल लोक का राजा और तंत्र-मंत्र एवं मायावी विद्या में प्रवीण था। अहिरावण ने अपनी माया से विभीषण का रूप धारण किया और रात्रि में सोए हुए श्रीराम-लक्ष्मण को पाताल लोक ले जाकर बंदी बना लिया।विभीषण नेअहिरावण द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण को बलि दिए जाने की आशंका जताते हुए हनुमान जी को शीघ्र पातालपुरी प्रस्थान का आग्रह किया। वहां हनुमान जी का सामना अपने पुत्र मकरध्वज से हुआ।(पौराणिक संदर्भ के अनुसार लंकादहन के बाद अपनी पूंछ की आग बुझाने हनुमान जी समुद्र में कूदे तो मकरी नें उनके पसीने को निगला। मकरीपुत्र-मकरध्वज हनुमान पुत्र कहलाया) अहिरावण ने पातालपुरी में अपनी रक्षा के लिए पाँच दिशाओं में पाँच दीपक जलाए थे। उसे वरदान प्राप्त था कि पांचों दीपक एकसाथ बुझाने पर उसकी शक्तियां समाप्त हो जाएंगी। हनुमान जी ने इन दीपकों को एक साथ बुझाने के लिए पंचमुखी रूप धारण किया और पांचों दीप एक साथ बुझा कर, मायावी शक्तियों से हीन अहिरावण का वध कर भगवान राम और लक्ष्मण को उस के चंगुल से मुक्त किया। रामेश्वरम् के पंचमुखी हनुमान जी का यह अद्वितीय विग्रह अहिरावण द्वारा अपहृत किए गए श्रीराम- लक्ष्मण की मुक्ति से जोड़ कर ---- रुद्रावतार हनुमानजी के पराक्रम, रामभक्ति और अटूट निष्ठा की दिव्य अनुभूति का संचार दर्शकों में अनायास ही करती है !!
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