जाड़ों का मौसम

जाड़ों का मौसम
मनभावन सुबह

लोकप्रिय पोस्ट

लोकप्रिय पोस्ट

Translate

लोकप्रिय पोस्ट

रविवार, 13 जुलाई 2025

विश्वेश्वर सारंगनाथ मन्दिर


🔱वैदिक काल से भी पूर्व जिस काशी की उपस्थिति को ऋग्वेद में अंकित है। इस अविमुक्त क्षेत्र काशी में ,भगवान् शिव के स्वरूप के अनेक विग्रह हैं। इनमें एक है - "सारंगनाथ मंदिर"। सारंगनाथ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम "सारनाथ" पड़ा ऐसी लोक मान्यता है।बेशक आज सारनाथ भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली के रूप में विख्यात है परन्तु उनसे यहां का दिगम्बर जैन मंदिर एवं सारंगनाथ शिव मंदिर भी जनसामान्य में प्रतिष्ठित है।
श्रावण मास में एक बार सारंगनाथ जी के दर्शन से काशी विश्वनाथ जी के दर्शनों के बराबर पुण्य फल प्राप्ति होती है,भक्तजनों  का ऐसा दृढ़ विश्वास है।
मंदिर में दर्शन करने से पूर्व,भक्तजन मंदिर के सामने बने सारंगनाथ सरोवर से आत्मशुद्धि करते हैं और फिर जल लेकर ४४ सीढ़ियां चढ़कर पावन शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।पुराणों में इस क्षेत्र को ऋषिपत्तन मृगदाव कहते थे।
मंदिर के इतिहास के बारे में कई लौकिक कथाएँ प्रचलित हैं। कहते हैं कि जब राजा हिमाचल ने अपनी पुत्री उमा का विवाह शिव से किया तो उस समय उनके भाई सारंग ऋषि वहां उपस्थित नहीं थे। वे तपस्या के लिए अन्यत्र गए हुए थे। तपस्या के बाद जब सारंग ऋषि अपने घर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि उनके पिता ने उनकी बहन का विवाह कैलाश पर रहने वाले औघड़ शिव से कर दिया है। सांसारिक सुखों से असम्पृक्त वर से बहन के विवाह की बात सुनकर वे दुःखी हुए। सारंग ऋषि अपनी राजसुख में पली बहन की दशा की कल्पना कर विचलित हो गए।उन्होंने ध्यान द्वारा जाना कि काशी में उनकी बहन पार्वती पति के साथ विचरण कर रही है। सारंग ऋषि धन-सम्पदा का भंडार लेकर, अपनी बहन से मिलने हिमालय से काशी के लिए चल पड़े।मार्ग में, ऋषिपत्तन में (जहां आज मंदिर है) वे विश्राम के लिए ठहर गए। थकावट के कारण वे सो गए।उन्होंने स्वप्न में देखा कि काशीनगरी एक वैभव सम्पन्न स्वर्णनगरी है। नींद खुलने के बाद वहां के लोगों से विश्वनाथ व पार्वती की यशोगाथा सुन, उन्हें बहुत ग्लानि हुई कि उन्होंने अपने बहनोई के बारे में कैसी अनर्गल कल्पनाएं की थी। उसी क्षण उन्होंने प्रण किया कि प्रायश्चित स्वरूप अब वो विश्वनाथजी की तपस्या करेंगे,उसके बाद ही वो अपनी बहन से मिलेंगे। ऋषिपत्तन को उन्होंने अपनी साधना स्थली बनाकर, बाबा विश्वनाथ की तपस्या की। जनश्रुति के अनुसार तपस्या करते-करते उनके पूरे शरीर पर फफोले निकलने लगे। वहां के पेड़ों नें अपनी गोंद टपका कर उन्हें शीतलता दी।अंत में उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर विश्वेश्वर ने पार्वती सहित उन्हें दर्शन दिए। बाबा विश्वनाथ नें जब सारंग ऋषि से इस जगह से काशी चलने को कहा तो उन्होंने कहा कि अब हम यहां से नहीं जाना चाहते,हमारे भ्रम का निवारण कर,सत्य का दर्शन करवाने वाला, आपके सच्चिदानंद स्वरुप का सानिध्य प्रदान करने वाला यह स्थल सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ स्थान है।भाई के स्नेह से अभिभूत पार्वती जी नें काशीधिपति विश्वनाथ से कुछ समय वहां ठहरने का आग्रह किया।
भगवान् आशुतोष नें पार्वती की इच्छा को सहर्ष स्वीकार किया और ऋषि सारंग को आशीर्वाद देते हुए कहा कि भविष्य में यह  स्थान "सारंगनाथ" के नाम से जाना जाएगा और कलयुग में जो चर्मरोगी सच्चे मन से तुम्हे गोंद चढ़ाएगा उसे चर्म रोग से मुक्ति मिल जाएगी।
लोक मान्यता कहती है कि सारंग ऋषि की तपस्थली का नाम उसी दिन से "सारंगनाथ" पड़ा। उनकी भक्ति देख प्रसन्न हुए बाबा विश्वनाथ स्वयं भी यहां सोमनाथ के रूप में विराजमान हुए।भोले भण्डारी अब भी श्रावण माह में पत्नी सहित वहां आकर निवास करते हैं।
वर्तमान में, श्रावण मास उमा-माहेश्वर के भक्तजनों के,*ॐ नमःपार्वतीपतये हर-हर महादेव * के जयकारों से इस मंदिर का सम्पूर्ण वातावरण गुंजायमान रहता है।
लोक-आस्था इस मंदिर को "जीजा-साले का भी मंदिर" कहकर पुकारती है।श्रद्धालु इस शिव मंदिर को भगवान् भोलेनाथ की दूसरी ससुराल मानते हैं।  
ऋषि की तपस्या, भक्त की द्वन्द्वात्मकता के परिशमन से अलौकिक आनन्द की यात्रा, भाई-बहन के मधुर सम्बन्धों की संवेदनशीलता और बाबा विश्वनाथ के आशुतोष स्वरूप का दर्शन करवाने वाला यह "सारंग नाथ महादेव मंदिर"अप्रतिम तीर्थ है।🙏 🔱स्वर्ण अनिल।🪷🪷🪷

कोई टिप्पणी नहीं: