जाड़ों का मौसम

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शनिवार, 27 दिसंबर 2025

२८ दिसम्बर

पौष की ठंड से कंपकंपाते दिन  
 नभ से नहीं पर हम सबके जीवन से
 जाने क्यों, उषा का उजाला गया छिन
रौशन यादों की अगरबत्तियाँ,
तब से सुलगती रहती हैं रात-दिन !
उनका धुँआ आँखों को समंदर बना,
धुंधला कर लौट आता है---- तेरे बिन !

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