मेरे देव,
मैं तुम्हारा ही गीत हू़
तन की इस वंशी सॆ उभरतॆ हर स्वर मॆं
तुम्हारे दिए साँसों का संगीत है
तुम्हारी शीतल छाया
मुझॆ हर आँधी,हर आघात सॆ
यूं सहॆज लॆती है --
जैसे -- मॉ अपने बच्चे को
हर अच्छी बुरी नज़र से बचाने के लिए
उसे अपनी ममता के आँचल में छिपाने के बाद भी,
आशंका से काँप कर- - -
अपने लाडले के चेहरे की हर रेखा को चूमकर
उसकी हर आपदा- - -हर बला को
- - - - - - अपने सर ले लेती है ।
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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2 टिप्पणियां:
an intensely soulful expression of thought and reality being beautifully fused together in a dream like state of trance...Bravo to the poetess
I have gone through your Blog and wish you to be number one in this world. I personally wish that your thoughts should reach every corner of this world. I wish you success in life. DEV
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