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शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

“ एक ईमानदार कोशिश “ ६ फरवरी २००९

“ एक ईमानदार कोशिश “

लक्ष्मण- रेखा को लाँघना

अपराध था - - - सीता का

ये बारम्बार बताया है - -सुनाया है परम्परा के ठेकेदारों ने !

राम के उस त्रेता युग से - - - - -- -- -- -- आज तक ।

शब्दों के कोड़ों से छीला है नारी के मन-प्राणों को - -

- - - - - - - इस लक्ष्मण – रेखा नें ।

ये ‘ रेखा ’ कमज़ोरी बना दी गई उसकी

और पुरुष अछूता बचा रहा इस रेखा से

तब से - - - - - आज तक !

रावण ; पुरुष के समग्र अहम् का प्रतीक ,

वो भी तो - - बिना बाँधे बँधा था उस रेखा से ।

- - - - - पार करना लक्ष्मण रेखा को ,

कहाँ संभव था उसके त्रिकाल विजयी पौरुष के लिए ?

तभी तो - -नारी की श्रद्धा ,उसके विश्वास को छला था उसने ।

और - - अपना सहज विश्वासी मन लिए

‘ वो ’ -- -- -- धरती की बेटी ‘

उस युग के स्थापित मूल्य ; साधु और सज्जन के लिए ,

सम्मान सहेजे , श्रद्धा से शीश झुकाए

निसंकोच भाव से लाँघ गई थी उस - - रेखा को |

अपराध किसका ? दोष किसका ? हाय ! मढ़ा गया किसके सिर |

तब से - - आज तक - - कितने युग बदले

पर ये जो अर्थ - चिपका दिए गए जबरन - -क्यों नही बदले ?

हर युग की देहलीज़ के भीतर खड़ा - -स्थापित मूल्य ,

नारी को ही क्यों छल जाता है ?

सीता के सहज विश्वासी मन को

अपराधी के कटघरे में क्यों खड़ा कर दिया जाता है

मैं - - - समझ नहीं पाती हूँ |

आओ इस नई सदी में एक भरपूर कोशिश करें - -

शब्दों को नये उजालों में आँकने की

अर्थ को एक सही अर्थ तक पहुँचाने की

- - - -- -- --एक ईमानदार कोशिश |

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