“ एक ईमानदार कोशिश “
लक्ष्मण- रेखा को लाँघना
अपराध था - - - सीता का
ये बारम्बार बताया है - -सुनाया है परम्परा के ठेकेदारों ने !
राम के उस त्रेता युग से - - - - -- -- -- -- आज तक ।
शब्दों के कोड़ों से छीला है नारी के मन-प्राणों को - -
- - - - - - - इस लक्ष्मण – रेखा नें ।
ये ‘ रेखा ’ कमज़ोरी बना दी गई उसकी
और पुरुष अछूता बचा रहा इस रेखा से
तब से - - - - - आज तक !
रावण ; पुरुष के समग्र अहम् का प्रतीक ,
वो भी तो - - बिना बाँधे बँधा था उस रेखा से ।
- - - - - पार करना लक्ष्मण रेखा को ,
कहाँ संभव था उसके त्रिकाल विजयी पौरुष के लिए ?
तभी तो - -नारी की श्रद्धा ,उसके विश्वास को छला था उसने ।
और - - अपना सहज विश्वासी मन लिए
‘ वो ’ -- -- -- धरती की बेटी ‘
उस युग के स्थापित मूल्य ; साधु और सज्जन के लिए ,
सम्मान सहेजे , श्रद्धा से शीश झुकाए
निसंकोच भाव से लाँघ गई थी उस - - रेखा को |
अपराध किसका ? दोष किसका ? हाय ! मढ़ा गया किसके सिर |
तब से - - आज तक - - कितने युग बदले
पर ये जो अर्थ - चिपका दिए गए जबरन - -क्यों नही बदले ?
हर युग की देहलीज़ के भीतर खड़ा - -स्थापित मूल्य ,
नारी को ही क्यों छल जाता है ?
सीता के सहज विश्वासी मन को
अपराधी के कटघरे में क्यों खड़ा कर दिया जाता है
मैं - - - समझ नहीं पाती हूँ |
आओ इस नई सदी में एक भरपूर कोशिश करें - -
शब्दों को नये उजालों में आँकने की
अर्थ को एक सही अर्थ तक पहुँचाने की
- - - -- -- --एक ईमानदार कोशिश |
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