हमारे तुम्हारे बीच
कुछ ऐसा है
जो प्यार के रंगों ,अपने पन के फूलों के कोमल पराग से
आँकी गयी रंगोली के बीच
मंदिर के दीप सा निरंतर प्रकाशित है
बचपन की निश्छल उल्लास भरी आँखों सा ,
मित्रता के अडिग अटूट विश्वास सा ,
सुहागन की माँग के सिन्दूर सा ,
---पवित्र अलोक भरा दमकता सा
ये सम्बन्ध ------
तुमको-हमारे लिए
कितने नातों में बदलता है
काभी शिशु , कभी सखा , कभी गुरु ,कभी पूज्य ,कभी पूजक
सच कहो ---तुम्हरे -हमारे बीच ये क्या है ?
समाज का दिया कोई एक संबोधन
क्या कभी इसे परिभाषित कर सकता है !
ये रिश्ता जो हमारे-तुम्हारे बीच है
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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2 टिप्पणियां:
aapke bhav jivan ke sach ko paribhashit karte he.aaj ki bhagdod me shanti dete he.hamare liye likhte rahiyega. madhur nagpal / pune
Bahut Hee umdaa likhaa hai swarn jee aapne. Yoon hee likhtee rahiye
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