जाड़ों का मौसम

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मनभावन सुबह

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शुक्रवार, 1 मई 2009

* * * जनतंत्र की मज़बूती * * *

आज विश्व भर में 'मई दिवस 'अर्थात 'श्रमिक दिवस ' पूरी निष्ठा व उत्साह से मनाया जा रहा है । प्राचीन यूनानी सभ्यता का फूलों 'से जुड़ा दिन , रोमन फूलों की देवी फ़्लोरा के सम्मान का दिन बना तो हवाई में ' मई-डे' ' लेई-डे ' । फ़्रांस में ' लिलि ऑफ़ वैलीआदि कई रूपों में मनाया जाता रहा । उन्नीसवीं शताब्दी में श्रम की महत्ता के साथ यह दिन श्रमिकों से जुड़ा और देश की सीमाओं को लाँघ कर सारे संसार को एक सूत्र में बाँध कर बना - विश्व श्रमिक दिवस । ये एक सुखद संयोग है कि आज श्रमिक दिवस के साथ भारतवर्ष का पावन-पर्व गंगा-जयंती भी मनाया जा रहा है ।' गंगा-जयंती ' का वर्णन नारद-पुराण और विष्णु-पुराण में मिलता है । मेरे लिए गंगा-जयंती हमेशा ही श्रम की गरिमा को जन-जन तक पहुँचाने वाले 'भगीरथ ' का संदेश सुनाने वाला पर्व रहा है । यहाँ मेरा मन एक और सत्य पर ठह्रर गया है -आज अँग्रेज़ों की 'फूट डालो;राज करो ' को जीवन का मूलमंत्र मानने वाले चाहे कुछ भी प्रचार करें पर इस सत्य को नही मिटा पायेंगे कि अपने परिश्रम से नई जागृति लाने वाले इस पुरोधा के इक्ष्वाकु वंश के
ही वंशज हैं - भगवान राम और भगवान बुद्ध । इस विषय पर चर्चा फिर कभी क्योंकि आज बात 'श्रमिक-दिवस' की है ।भगीरथ नें हमे सिखाया कि राजसत्त्ता / व्यक्तिगत सुविधाओं को तिलाँजलि देकर ही धरती को उर्वर बनाया जा सकता है , धरा पर दैहिक,भौतिक ,आध्यात्मिक ताप -त्रयी को शांत कर आनंद का प्रसार करने वाली 'भागीरथी ' को उतारा जा सकता है । गंगा-जयंतीकठिनत्तम परिस्थितियों पर मानवीय संकल्पों की विजय का उदघोष है , श्रम की महत्ता का सिंहनाद है ।' आज का दिन हमारे उस भगीरथ संकल्प का दिन बनेगा जो भारत में नए युग का सूत्रपात करेगा

* * * जनतंत्र की मज़बूती * * *
जनतंत्र की मज़बूत दीवार को-
व्यक्तिगत स्वार्थों के पानी की हर लहर कुछ ऐसे छूती है
कि दीवार - = अन्दर तक भीग जाती है ।
किसी को भी यह एहसास नही होता
ना लहरों को ना दीवार को - - कि
जो दरारें आहिस्ता - आहिस्ता उभरती हैं
उनका दर्द बहुत गहरा होता है ।
इतना गहरा कि - - - -
जब तक दोनों इस ख़ामोश चोट को
जान पायेंगे , पहचान पायेंगे
तब तक दीवार की नींव इतनी खोखली हो जाएगी
कि - -उसके पास डह जाने के इलावा कोई चारा ही न्ही बचेगा
और पानी - -अनजाने या - शायद जानबूझ कर हुए
अपराध की ग्लानि से भरा सिसकता ,पछताता रह जाएगा ।
जानते हो ना कि इसी देश में ब्रजप्रदेश को बचाने के लिए ,
कान्हा नें एक ऊँगली पर पर्वत उठाया था -
कोरी कल्पित कहानी नही है ये - -आज जनतंत्र को ,
इस मज़बूत दीवार को तुम्हारी एक ऊँगली डहने से बचा सकती है !

1 टिप्पणी:

Ashutosh ने कहा…

The true meaning of May day is in the simple fact that all these mammoths, be it the Taj Mahal, The Pyramids, the Great Wall and many more seemingly impossible structures, stand today as witnesses to the massive earth shattering force that is mankind...

The Bhagirath effort is what we shy away from today and attempt to patronize those who use their hands to shape the airconditioned offices we sit in...An irony so deep that it blurs the difference beteween sweat and blood.

We all talk of the evil that is politics. And yet the empty words we speak deflect off the walls of our living rooms and die away shamefully as we nonchalantly see criminals and greedy take on the country...I say it's time to take the reins and run our chariot(India) the way we want to! The easiest way is to VOTE!!!!