जाड़ों का मौसम

जाड़ों का मौसम
मनभावन सुबह

लोकप्रिय पोस्ट

लोकप्रिय पोस्ट

Translate

लोकप्रिय पोस्ट

सोमवार, 4 मई 2009

धरती की बेटी

कल अपने कुछ आत्मीय लोगों के साथ बातचीत के बीच, चर्चाओं के विभिन्न संदर्भों में चर्चा के एक छोर पर ठहरे ,तो हमें याद आया कि आज “जानकी नवमी“ है । जनक दुलारी सीता का ज़िक्र आते ही ‘ जैसे हर सफल पुरुष के पीछे एक नारी होती है वैसे ही हर सफल नारी के पीछे एक पुरुष होता है ‘ के कई उदाहरण हमनें व्यक्तिगत और समाज के जीवन से खोजने शुरू कर दिए । हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह किसकी सफलता के पीछे कौन ? ये बातचीत भी एक सुखद अंत पर आ गयी क्योंकि हम सब के निजी अनुभव उसकी कसौटी थे परंतु - - - भारतीय नारी के संदर्भ में ये सत्य आज भी अधिकांशत: खरा नहीं उतरता ये हम जानते हैं ।जानकी-नवमी का दिन है इसलिए जन- जन के प्रिय सीता-राम को, प्रतीक के मानकर नारी और पुरुष के मध्य की इस दूरी को पाटनें की कोशिश कर रही हूँ मेरे भावों–विचारों को प्रबुद्ध पाठकों नें जिस खुले हृदय से पढ़ा उसी नें मुझे इस कविता को यहाँ लिखने का साहस दिया है।

********* धरती की बेटी *********
कोई कब तक पी सकता है ,
बेवजह – अपमान का विष ?
उस तीखी जलन को सहने की भी एक सीमा होती है ,
सीमा-रेखा पार होते ही - - -
धरती की बेटी ‘सीता’ का धैर्य भी चुक जाता है।
और - - - याद रखना - - -
फिर –‘राम’ का सारा प्रायश्चित्त सारा समर्पण , सारा स्वीकार भी-
सीता के हृदय से अपमान के उस गहरे दंश को नहीं निकाल पाता ।
फिर सम्बन्धों की सारी शक्ति
नेह की करुण पुकारें - - -
रोक नहीं पाती – सीता को धरती में समाने से |
परीक्षित सीता को – ! ! ! !
हृदय की समग्रता से निष्कलंक साबित करने पर भी ;
राम का अपराध-बोध मृत्युपर्यंत पीछा नहीं छोड़ता |
इसीलिए कहती हूँ - -
अपमान उस सीमा तक मत करो कि - -
एक को निरंतर परीक्षित होने की ग्लानि मार दे
और दूसरे को - -अपराध-बोध जीने ना दे ।
*********

कोई टिप्पणी नहीं: