कल अर्थात ७ मई ; भारत की राजधानी दिल्ली में मतदान का दिन है । लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण पर्व में हम सबकी साझेदारी रहे ये बहुत ज़रूरी है । हमें याद है - कल अर्थात ७ मई ; भारत की राजधानी दिल्ली में मतदान का दिन है । लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण पर्व में हम सबकी साझेदारी रहे ये बहुत ज़रूरी है । हमें याद आ रही हैं " रवीन्द्रनाथ ठाकुर " की ' गीतांजलि ' के गीत 'आनन्द -यज्ञ ' की वे पंक्तियाँ जिनमें गुरूदेव ने बेशक आध्यात्मिक्ता का संदेश दिया था, पर ७ मई १८६१ को जन्मे राष्ट्रकवि का संदेश आज हमें और का नही ; अपने भारतवर्ष द्वारा भेजा निमंत्रण - पत्र लग रहा है यूँ भी शब्दों के अर्थ तो संदर्भों से ही जुड़े होते हैं । गुरूदेव के जन्मदिन पर मैं उन्हे श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए , अपने मतदान के अधिकार /कर्तव्य का प्रयोग कर भारतीय संविधान के प्रति अपनी आस्था को एक बार फिर पुष्ट करूँगी ; हिमाचल प्रदेश के शिमला से ६० कि.मी. दूर 'जुग्गर' गॉव के
१२७ वर्ष के " भद्रू " की तरह । जिसके मतदान की प्रक्रिया पर अटूट आस्था की बात आज के टाईम्स ऑफ़ इंडिया में छपी है ।
* * * * * * *
" तेरे , उत्सव मे जाकर , तेरी जयध्वनि सुनू और तेरे चरणों में, मौन प्रणाम की भेंट दूँ
इस आनन्द उत्सव में
मुझे भाग लेने का
निमंत्रण मिला है | "
* *
रवीन्द्रनाथ ठाकुर --
समसामयिक परिवेश में जो कुछ घटता है वो कभी लावे की तरह तो कभी बर्फ की तरह पिघल कर मेरी क़लम से अक्षरों में बदलता जाता है | अक्षरों की ये आँच, ये ठँडक उन सब तक पहुँचे जो अपनी बात *अपनी भाषा में कहने में झिझकते नहीं हैं !!!!
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