उँगलियों की नर्म पोरों से, मेरी हथेली पर, पहली बार जब लिखा अपना नाम तुमने ;
कितनी पुरानी हुई आज ‘वो’ बात ! लगाना चाहा जब हिसाब हमनें
‘ बीस - तीस बरस नहीं - युगों पुराना ये साथ अटल है ’
खिलखिलाते आम की बौराई डालियों नें कूक कर कहा - एक ही पल में ।।
भोर के माथे का सिंदूर जब अलसाए आकाश के सीने पर बिखर कर ;
सब की जानी - बूझी अनकही कहानी बिन कहे, बिन बोले सुनाने लगता है
तब रात का धुंधलका कितना सुरमई हो उठता है – एक ही पल में ।।
तारों की जगमग – जगमग करती अपनी चूनरी में ;
निढाल – बोझिल , थकान से चूर – चूर हुए दिन को,
प्यार से दुलरा कर , अपनेपन से भीगती शाम जब सहेजती है
तब कितना कुछ जाग जाता है – एक ही पल में ।।
पूरे चाँद के दमकते – इतराते – मासूम – रुपहले - चेहरे को ;
बेला की उजली सुगंध से धीरे –धीरे सहलाती बादल की ऊँगलियों की शरारत
कुछ छलकाकर , कुछ बहका कर जाती है – एक ही पल में ।।
बीते वक्त के घावों की टीस भरी, बेचैन छटपटाहट को ,
अनचाहे सम्बन्धों पर बेवजह उभरती खीझ भरी झुँझलाहट को ,
तुम्हारे हाथों की गर्म चाय का जादू मिठास से भर देता है –एक ही पल में ।।
- - जीवन को नए इन्द्रधनुषी पँख मिल जाते हैं - - उस एक ही पल में !!!!
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