जाड़ों का मौसम

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शनिवार, 9 मई 2009

इस एक पल में ********* ९ मई २००९

उँगलियों की नर्म पोरों से, मेरी हथेली पर, पहली बार जब लिखा अपना नाम तुमने ;

कितनी पुरानी हुई आज ‘वो’ बात ! लगाना चाहा जब हिसाब हमनें

‘ बीस - तीस बरस नहीं - युगों पुराना ये साथ अटल है

खिलखिलाते आम की बौराई डालियों नें कूक कर कहा - एक ही पल में ।।

भोर के माथे का सिंदूर जब अलसाए आकाश के सीने पर बिखर कर ;

सब की जानी - बूझी अनकही कहानी बिन कहे, बिन बोले सुनाने लगता है

तब रात का धुंधलका कितना सुरमई हो उठता है – एक ही पल में ।।

तारों की जगमग – जगमग करती अपनी चूनरी में ;

निढाल – बोझिल , थकान से चूर – चूर हुए दिन को,

प्यार से दुलरा कर , अपनेपन से भीगती शाम जब सहेजती है

तब कितना कुछ जाग जाता है – एक ही पल में ।।

पूरे चाँद के दमकते – इतराते – मासूम – रुपहले - चेहरे को ;

बेला की उजली सुगंध से धीरे –धीरे सहलाती बादल की ऊँगलियों की शरारत

कुछ छलकाकर , कुछ बहका कर जाती है – एक ही पल में ।।

बीते वक्त के घावों की टीस भरी, बेचैन छटपटाहट को ,

अनचाहे सम्बन्धों पर बेवजह उभरती खीझ भरी झुँझलाहट को ,

तुम्हारे हाथों की गर्म चाय का जादू मिठास से भर देता है –एक ही पल में ।।

- - जीवन को नए इन्द्रधनुषी पँख मिल जाते हैं - - उस एक ही पल में !!!!

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