नन्ही कोमल हथेलियों में बेला के फूलों की
भीनी-भीनी सुगंध को सहेजने वाले - मासूम हाथ ;
रिश्तों की सारी महक को मज़बूती से थाम कर
आज - अपने स्पर्श से कह देते हैं दिल की बात !
- ऐसा सब कहते हैं !!
अपनी ओर उठी गुस्से भरी नज़र को , मृग-छोने की
हैरान – प्रश्नों भरी जिज्ञासा से निहारते - अबोध नयन ;
दुनिया भर के अनचीन्हे नज़रियों को समझदारी से
आज – अपनी सोच की तराज़ू में तोल कर करते हैं चयन !!
- - ऐसा सब कहते हैं !!
प्यार में गुनगुनाता ,क्रोध में तमतमाता ,मचलता ,इतराता ,
बचपन की देहरी से झाँकता जो नटखट कान्हा सा मनभाया ;
गोकुल की गलियों से निकल कर मथुरा पहुँचने की यात्रा में
आज – जीवन के कुरुक्षेत्र का कृष्ण बन कितना निखर आया !!!
- - ऐसा सब कहते हैं !!
बाहर कितना बदलाव आया , मेरी ममता नहीं परख पाती है ,
आज भी – जब मेरी नज़र जब उसे सब कहीं खोज लौट आती है ;
तब – दबे पाँव पीछे से आकर , बरबस ही मुझे चौंकाता है ,
गले में दोनों बाँहें डाल - अम्मी कह – खिलखिलाता है ,
मेरे सुलगते दर्द को , अनसुलझे सवालों के बोझ को –
पिघलते मन के साथ – मज़बूत कँधों पर उठा लेता है
बिना कुछ बोले एहसास भरता है ममता का ,अपनेपन का
वो - - जो परितोष है मेरे प्राणों का - - मेरे मन का !!!!