आज समाचार पत्र में झारखंड के कोदरमा गाँव के मनन अंसारी के जेनेवा जाने का समाचार छ्पा है । लगभग चार वर्ष पूर्व तक बाल श्रमिक के रूप में काम करने वाला बालक ‘बचपन – बचाओ – आन्दोलन ‘ के संरक्षण में आने के बाद आज स्वयं भी बाल- श्रम के विरुद्ध एक जागरूक कार्यकर्ता बन गया है । अपनी इसी भूमिका को निभाने ये चौदह वर्ष का सामाजिक कार्यकर्ता कल अर्थात १२ जून २००९ को “ विश्व बाल श्रम विरोधी दिवस ” पर ‘ अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक अधिवेशन ‘ को सम्बोधित करने वाला है । मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ और आशीर्वाद नई सुबह की ओर बढ़ने वाले इन नन्हे वीरों को अर्पित करती हूँ और सारे संसार के समृद्ध व तथाकथित सभ्य लोगों की व्यापारिक सोच को झकझोरना चाहती हूँ; मेरी नज़र इस विश्वव्यापी समस्या को जिस रूप में देखती है उस रूप को मैं आप सुधी पाठकों के सम्मुख इस विश्वास से रख रही हूँ कि समान विचारधारा की चिंगारियाँ – उनका प्रकाश ; कुछ अंतर तो अवश्य लाएगा – बाल श्रमिकों संबंधी चिंतन में - -
******* पीवणां *******
नन्हे नन्हे कलियों से होंठों में दबी मासूम बचपन की चौंकती सी बुदबुदाहट को .
मेरी ममता ; हाथों से सहलाकर पोंछ देना चाहती है ।
नींद में डरी हुई उसकी अनियंत्रित सांसों को अपनी गोद में समेट कर संयमित करना चाहती है ।
पर तभी कहीं से - - आँगन के नज़दीकी छोर से - या –
शायद धरती की दूसरी कोर से धुएँ के फैलने की गंध आती है
कोई बड़ा धमाका , कोई शोर – कुछ भी तो नहीं - -
उस धुएँ की सीमारेखा में कोई छ्ट्पटाहट भी नहीं है ,
बस - धुआँ छटने के बाद - माँओं की गोद में निश्चिंत सोए शिशु
ममता की रतजगे भरी आँखें – किसी में भी जीवन का कोई चिन्ह शेष नहीं ।
मैं - - जाने घबराहट में - या जानबूझकर
मैं - - गोदी में सोए शिशु को इतनी ज़ोर से सीने से लगाती हूँ
कि वो - - कसमसा कर जाग जाता है ।
तब से - अब मेरी यही कोशिश है कि - वो – सोए नहीं - -
तब से - - मेरी ममता धरती के हर शिशु को जगाना चाहती है ।
ताकि - कहीं ऐसा ना हो कि - -
रेगिस्तान के पीवणां साँप की तरह –
कोई उनकी मासूम सांसों में ज़हर घोलकर
चुपचाप उनका जीवन पी जाए और किसी को इसकी ख़बर भी ना हो ।
चारों ओर बिखरी नपुंसक चुप्पी ;
इस ज़हरीली साज़िश को ,जागती आँखों का सपना मानकर झुठलाना चाहती है
परन्तु – इस निर्मम सत्य को पहचानती मेरी ममता ;
लोरी की तान पर थपकी देते हुए माँओं के हाथों को जबरन रोक देना चाहती है !!!!
******* पीवणां *******
नन्हे नन्हे कलियों से होंठों में दबी मासूम बचपन की चौंकती सी बुदबुदाहट को .
मेरी ममता ; हाथों से सहलाकर पोंछ देना चाहती है ।
नींद में डरी हुई उसकी अनियंत्रित सांसों को अपनी गोद में समेट कर संयमित करना चाहती है ।
पर तभी कहीं से - - आँगन के नज़दीकी छोर से - या –
शायद धरती की दूसरी कोर से धुएँ के फैलने की गंध आती है
कोई बड़ा धमाका , कोई शोर – कुछ भी तो नहीं - -
उस धुएँ की सीमारेखा में कोई छ्ट्पटाहट भी नहीं है ,
बस - धुआँ छटने के बाद - माँओं की गोद में निश्चिंत सोए शिशु
ममता की रतजगे भरी आँखें – किसी में भी जीवन का कोई चिन्ह शेष नहीं ।
मैं - - जाने घबराहट में - या जानबूझकर
मैं - - गोदी में सोए शिशु को इतनी ज़ोर से सीने से लगाती हूँ
कि वो - - कसमसा कर जाग जाता है ।
तब से - अब मेरी यही कोशिश है कि - वो – सोए नहीं - -
तब से - - मेरी ममता धरती के हर शिशु को जगाना चाहती है ।
ताकि - कहीं ऐसा ना हो कि - -
रेगिस्तान के पीवणां साँप की तरह –
कोई उनकी मासूम सांसों में ज़हर घोलकर
चुपचाप उनका जीवन पी जाए और किसी को इसकी ख़बर भी ना हो ।
चारों ओर बिखरी नपुंसक चुप्पी ;
इस ज़हरीली साज़िश को ,जागती आँखों का सपना मानकर झुठलाना चाहती है
परन्तु – इस निर्मम सत्य को पहचानती मेरी ममता ;
लोरी की तान पर थपकी देते हुए माँओं के हाथों को जबरन रोक देना चाहती है !!!!
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