आज का दिन मुझे राम और कृष्ण की पावन स्मृतियों के उस झरोखे के पास खड़ा कर गया है जिससे हाथ बढ़ा कर मैं उस अतीत के पन्ने खोल लेती हूँ जिस में एक ओर राम-राज्य का और विशाल-भारत (महाभारत)के आदर्शों को चरितार्थ करने वाले पुरुषोत्तम हैं तो दूसरी ओर उनके चरित्रों व विचारों से जन-जन को जगाने वाले तुलसी, सूर,कबीर ।यहाँ संदर्भ - इन सबकी कर्म-भूमि ; अयोध्या, मथुरा, ब्रज , काशी को अपने में समेटने वाले वर्तमान “उत्तर- प्रदेश” से जुड़ा है । २४- २५ जून को दूरदर्शन के सभी चैनलों और समाचार-पत्रों नें एक समाचार बड़ी मुस्तैदी से दिखाया कि उत्तर- प्रदेश की मुख्य-मंत्री ने अम्बेडकर जी , कांशीराम जी, अपनी स्वयं की और अपने पार्टी प्रतीक-चिन्ह सफ़ेद हाथी की कई मूर्तियों के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया – खर्च ; करोड़ों का । २५ जून को समाचार पत्र (टाईम्स ऑफ़ इंडिया) के बीच के पृष्ठ पर छोटी सी ख़बर है , ‘ उत्तर-प्रदेश में केन्द्रीय सरकार की “रोज़गार गारण्टी योजना” के अंतर्गत बाँटी गई नौकरियों में से (१००) सौ नौकरियाँ मृत लोगों के नाम आबंटित । ‘ – बात एक प्रदेश से चलकर दूर-दूर पहुँच गई है - राम-राज्य और विशाल-भारत के चिंतन, मानवीय मूल्यों से जुड़ी इस धरती पर, मूर्तियों और मृतकों के बीच झूलता मानव-जीवन कहाँ पहुँच रहा है इसी उधेड़-बुन का लेखा जोखा कागज़ पर उतार रही हूँ - -
ये जगह कौन सी है !
धरती के अँचल में ये जगह कौन सी है ?
ये जगह इतनी अजनबी क्यों है !
यहाँ नन्हे बच्चे तितलियों को पकड़ने नहीं दौड़ते ,
माँ चँदा को मामा कह कर लोरी नहीं गाती ।
समन्दर भी है – रेत भी है-
पर घरौंदे बनाने का साहस कोई नहीं जुटा पाता।
पेड़ों पर बिन बुलाए आए हुए फूल
जमे हुए आँसुओं की तरह ख़ामोश हैं ।
मूर्तियों और मृतकों के बीच घिसटकर चलता इंसान ,
होली पर बिखरता खून और दीवाली में जलता घर देखता है ।
इस जगह कुच भी हिलता डुलता नज़र नहीं आता ,
नज़र आती हैं कई जोड़ी सहमी हुई –आँखें
जो सिर्फ़ आकाश में ही नहीं – धरती पर भी गिद्धों को मंडराते देखती हैं
धरती के अँचल में ये जगह कौन सी है ! !
ये जगह कौन सी है !
धरती के अँचल में ये जगह कौन सी है ?
ये जगह इतनी अजनबी क्यों है !
यहाँ नन्हे बच्चे तितलियों को पकड़ने नहीं दौड़ते ,
माँ चँदा को मामा कह कर लोरी नहीं गाती ।
समन्दर भी है – रेत भी है-
पर घरौंदे बनाने का साहस कोई नहीं जुटा पाता।
पेड़ों पर बिन बुलाए आए हुए फूल
जमे हुए आँसुओं की तरह ख़ामोश हैं ।
मूर्तियों और मृतकों के बीच घिसटकर चलता इंसान ,
होली पर बिखरता खून और दीवाली में जलता घर देखता है ।
इस जगह कुच भी हिलता डुलता नज़र नहीं आता ,
नज़र आती हैं कई जोड़ी सहमी हुई –आँखें
जो सिर्फ़ आकाश में ही नहीं – धरती पर भी गिद्धों को मंडराते देखती हैं
धरती के अँचल में ये जगह कौन सी है ! !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें