गरमी की तपती दोपहरी ;
बालपन की अलहड़ता छोड़ ।
यौवन पगी अपनी कंचन काया को ;
नदी के गुनगुने पानी से निखार ,
अमलतास के सुनहले आँचल में लपेटे ,
बन्द दरवाज़े की चौखट के उस पार
कुछ भूली सी,कहीं खोई सी -अनमनी सी
धूल भरी गर्म हवाओं के बीच चुपचाप खड़ी है ।
द्वापर की बिरहन राधा सी – प्रतीक्षा–रत ,
अपने निर्मोही - घनश्याम को पुकारती ।
बालपन की अलहड़ता छोड़ ।
यौवन पगी अपनी कंचन काया को ;
नदी के गुनगुने पानी से निखार ,
अमलतास के सुनहले आँचल में लपेटे ,
बन्द दरवाज़े की चौखट के उस पार
कुछ भूली सी,कहीं खोई सी -अनमनी सी
धूल भरी गर्म हवाओं के बीच चुपचाप खड़ी है ।
द्वापर की बिरहन राधा सी – प्रतीक्षा–रत ,
अपने निर्मोही - घनश्याम को पुकारती ।
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