जाड़ों का मौसम

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शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

भीगना ३ जुलाई २००९

मेघों का आना,हमारा भीगना ;सब के लिए एक सा नहीं रहता है।
कोई ढोल-मृदंग बजाता तो कोई टूटी छत्त तले रोकर इसे सहता है।
कभी सावन की रिमझिम बरसती बूँदों के साथ ,
जब इन्द्रधनुषी रंग, धरा पर उतर आते हैं- धीरे से ,
तब तन के साथ-साथ मन भी सराबोर हो जाता है ,
- - मुस्कराते सतरंगे रंगों में ।
कभी फागुन में; बादलों से थम–थम कर बरसता पानी ,
होली के अबीर को ,गुलाल के दमकते सारे रंगों को ,
ऐसे धो डालता है कि हर फुहार, भावों को बदरंग कर ,
- - - पीड़ा भर जाती है सारे अँगों में ।
कड़वे मीठे अनुभवों से ज़िन्दगी ने ये सच समझाया- कि
भीगना असल में - महकता उपहार है - मन के मौसम का
बाहर का मौसम तो - धोखा है - जो भिगोता नहीं ।
- - - सिर्फ़ छूता है , अनपहचाने ढंगों में ।

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