******* चुनौती *******
मेरे अज़ीज़ ,मेरे अपने , तेरे दर्द को सुन,
मेरी सुर्ख आँखों से जो अभी-अभी टपका है !
खारा पानी नहीं,मेरे लहू का 'वो' क़तरा है जो,
दिल की राह भूल ,गालों पे आके अटका है |
जानते हो तुम कि दर्द से जुड़ा हर रिश्ता,
चनाब की लहरों पर तैराने वाला सोहनी का ऐसा मटका है !
जिसके कच्चेपन की सौंधी सौंधी खुशबू से टकरा कर,
समझदारी का उफनता पानी सदा दर-ब-दर ही भटका है |
रात की मुंहजोर ताकत के आगे जब-जब भी ,
रौशनी के ठेकेदार सूरज का मुँह पराजित होने के डर से लटका है !
नन्हे दिए नें स्वीकारी अंधेरों की चुनौती तब-तब ही ,
जिसके विश्वासी मन को किसी आतंक का ना कोई खटका है | |
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मेरे अज़ीज़ ,मेरे अपने , तेरे दर्द को सुन,
मेरी सुर्ख आँखों से जो अभी-अभी टपका है !
खारा पानी नहीं,मेरे लहू का 'वो' क़तरा है जो,
दिल की राह भूल ,गालों पे आके अटका है |
जानते हो तुम कि दर्द से जुड़ा हर रिश्ता,
चनाब की लहरों पर तैराने वाला सोहनी का ऐसा मटका है !
जिसके कच्चेपन की सौंधी सौंधी खुशबू से टकरा कर,
समझदारी का उफनता पानी सदा दर-ब-दर ही भटका है |
रात की मुंहजोर ताकत के आगे जब-जब भी ,
रौशनी के ठेकेदार सूरज का मुँह पराजित होने के डर से लटका है !
नन्हे दिए नें स्वीकारी अंधेरों की चुनौती तब-तब ही ,
जिसके विश्वासी मन को किसी आतंक का ना कोई खटका है | |
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1 टिप्पणी:
आँखों से टपकता लहू का कतरा ही रौशनी के ठेकेदारों को चुनौती दे सकता है स्वर्ण |
बधाई सुंदर रचना के लिए |
मंजूषा गोगोई ,आसाम|
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