साहिर लुधियानवी जी की शायरी से ,
उनके - दिल की गहराइयों में बरसों -बरस गूँजते रहने वाले
गीतों से मेरी पहचान - - मेरे पिताजी ने करवाई थी ।बचपन में -शायद ७-८ बरस की उम्र में
हमनें देखा - पापा ; बाँसुरी पर 'अल्लाह तेरो नाम -ईश्वर तेरो नाम ' की धुन बजाते -बजाते
- गीत के बोलों को अपनी मधुर
आवाज़ में गाते हुए इतने मगन हो जाते थे कि - --
हमें इस गीत के जादुई असर पर विश्वास हो गया था ।
वक्त गुज़रा तो 'ये देश है वीर जवानों का ' जैसे गीत - - -- और फिर उम्र के नाज़ुक दौर के
रूमानी एहसास को - -हक़ीक़त की खुरदुरी ज़मीन पर पाँव जमाने की कोशिशों को - -
चित्रलेखा, धूल का फूल ,काजल , गुमराह, हम-दोनों, नया रास्ता ,प्यासा ,नया दौर , वक़्त ,
बरसात की रात , हमराज़ , दाग़ और कभी-कभी - - - जैसी कितनी ही फिल्मों के ;
गीतों -ग़ज़लों के - - साहिर जी के बोल नई दिशा देते रहे ।
३१ वर्षों में १२२ फिल्मों के लिए ७३३ गीतों को लिखने वाले साहिर लुधियानवी जी की
क़लम का जादू हमने ; १९४५ में लाहौर से प्रकाशित ' तल्ख़ियाँ ' और - - -
मैं पल दो पल का शायर हूँ , जाग उठे ख़्वाब कई, गाता जाए बंजारा ' क़िताबों को
पढ़ते हुए - उनके एक-एक हर्फ़ में महसूस किया है ।
१९४८ में साहिर जी ने फ़िल्मों के लिए गीत लिखने कि शुरुआत की थी । उनकी पहली फ़िल्म
'आज़ादी की राह पर ' का पहला गीत था :-----
" बदल रही है ज़िन्दगी -२ ,
ये उजड़ी -उजड़ी बस्तियाँ ,ये लूट की निशानियाँ ,
ये अजनबी ; ये अजनबी के ज़ुल्म की कहानियाँ ,
अब इन दुखों के भार से निकल रही है ज़िन्दगी ,
बदल रही है ज़िन्दगी ।।
ज़मीन पे सरसराहटें ,फ़लक पे थरथराहटें ,
फ़िज़ा में गूँजती है एक नए जहाँ की आहटें ,
मचल रही है ज़िन्दगी ,सँवर रही है ज़िन्दगी ,
बदल रही है ज़िन्दगी ।।"
साहिर ने अपने नाम के अर्थ - जादुई ,मनमोहक ,जागरूक ,मित्र - को अपनी सशक्त क़लम
से सार्थक कर २५ अक्तूबर को इस दुनिया को अलविदा कह दी ; ठीक हमारे पापा के जाने की
तारीख़ २३ अक्तूबर के एक दिन बाद - ! ! ॥
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