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शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

! ! क्रान्ति-वीरों को श्रद्धा -सुमन ! !


क्रांतिवीरों के नाम :          जन्म तिथि :               पुण्य तिथि :  
महारानी लक्ष्मीबाई :          १९ नवम्बर १८३५                         १८ जून १८५८  
 झलकारी बाई  :                  २२ नवम्बर १८३०                          - -------- १९५८ 
 श्री वासुदेव बलवंत फड़के      ४ नवम्बर १८४५                         १७ फरवरी १८८३               
लाला लाजपत राय  :          २८ जनवरी १८६५                           १७वम्बर १९२८ 
श्री विपिन चन्द्र पाल :         ७ नवम्बर १८५८                             २० मई १९३२  
करतार सिंह सराभा :             २४ मई १८९६                                १६ नवम्बर १९१५ 
श्री बटुकेश्वर दत्त :                १८ नवम्बर १९१०                         २० जुलाई १९६५ 
मौ०अब्दुल क़लाम आज़ाद : ११ नवम्बर १८८८                          २२ फरवरी १९५८  
महात्मा ज्योतिराव फुल्ले :  ११ अप्रैल १८२७                               २ नवम्बर १८९० 
महात्मा हँसराज     :             १९ अप्रैल १८६४                              १५ नवम्बर १९३८   
सेनापति बापट :                    १२ नवम्बर १८८०                          २८ नवम्बर १९६७ 
आचार्य विनोबा भावे  :           ११ सितंबर १८९५                          १५ नवम्बर १९८२ 
लाला लाजपत राय  :             २८ जनवरी १८६५                           १७ नवम्बर १९२
श्री विपिन चन्द्र पाल :             ७ नवम्बर १८५८                            २० मई १९३२  
करतार सिंह सराभा :               २४ मई १८९६                                 १६ नवम्बर १९१५ 
श्री बटुकेश्वर दत्त :                   १८ नवम्बर १९१०                        २० जुलाई १९६५ 
मौ०अब्दुल क़लाम आज़ाद :       ११ नवम्बर १८८८                       २२ फरवरी १९५८  

नवम्बर का महीना हर बार हमें कुछ ऐसे क्रान्ति-वीरों की बलिदान-गाथा का स्मरण दिलाता है जिनमें से कुछ व्यक्तित्वों के बारे में हम बहुत कम चर्चा करते हैं । ये वादा हमनें अपने आप से किया था कि इस बार हम कुछ स्वतंत्रता सैनानियों को श्रद्धा -सुमन अवश्य चढ़ाएँगे।
महारानी लक्ष्मीबाई ; "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी "के रण-कौशल का लोहा तो दुश्मनों को भी मानना पड़ा था ,भारतीयों में तो कोई भी राष्ट्र-प्रेमी ऐसा नहीं होगा जो इनकी शौर्यगाथा से अपरिचित होगा। झाँसी की रानी का नाम मणिकर्णिका था इसीलिए बचपन में सब उन्हें  'मनु '  कह कर पुकारते थे
करतार सिंह सराभा अमरीका के बर्कले विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा पाने गए थे पर प्रवास के दौरान मिले तिरस्कार ने उन्हें अपने देश को स्वतंत्र करवाने की अदम्य इच्छा से भर दिया था । अमरीका में बनी गदर पार्टी के इस क्रांतिवीर को जब अंग्रेज़ी सरकार ने फाँसी दी थी तब इनकी आयु थी :- साढ़े उन्नीस वर्ष ।
झलकारी बाई ; महारानी लक्ष्मीबाई की महिला फौजी टुकड़ी 'दुर्गा-वाहिनी ' की वही वीरांगना हैं जिन्होंनें  स्वयं को झाँसी की रानी कहकर दुश्मनों को भ्रमित कर, अपनी महारानी को अंग्रेज़ों की पकड़ से दूर जाने में मदद की थी।बुंदेलखंड के लोकगीतों में इनकी वीरता की गाथाएँ आज भी दोहराई जाती हैं ।
वासुदेव बलवंत फड़के ; भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के आदि क्रांतिकारी । एक अकेले व्यक्ति जिनका नाम पूरी युवा-पीढ़ी के लिए राष्ट्र-भक्ति का प्रेरणास्रोत और अंग्रेज़ी राज के लिए भय का कारण बन गया था।सशस्त्र क्रांति के इस महान जनक की संघर्ष-यात्रा , बंकिमचन्द्र चैटर्जी के प्रसिद्ध उपन्यास आनंद-मठ की प्रेरणा बनी थी ,वही आनंद-मठ जिसका वंदे मातरम् जन-जन का स्वातंत्र्य-गीत बन गया था । 
ज्योतिराव गोविंदराव फुले ;महान विचारक ,लेखक समाजसेवी व् क्रांतिकारी महात्मा ज्योतिबा फुले ने १८५४ में सामाजिक विरोधों के बावजूद  कन्याओं का विद्यालय शुरू किया था । सत्यशोधक समाज संस्था का गठन कर समाज के निर्धन ,दलित व् महिला वर्ग की समस्याओं को दूर करने  के सार्थक प्रयास किये ॥
महात्मा हंसराज ;  राष्ट्र -प्रेम को उचित शिक्षा पद्धति ही सही दिशा दे सकती है इस सत्य को जानकर दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल की आधारशिला रखने वाले महान शिक्षाविद् नें अंग्रेज़ी राज में युवाओं में भारतीयता के संस्कार जगाने का जो कार्य किया था वह आज तक चल रहा है ।
पांडुरंग महादेव बापट ; भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनापति (मुलशी सत्याग्रह ) कहे जाने वाले सेनापति बापट के व्यक्तित्व को जानने के लिए साने गुरूजी का कथन काफ़ी है,"सेनापति में मुझे छत्रपति शिवाजी महाराज ,समर्थ गुरू रामदास तथा संत तुकाराम कि त्रिमूर्ति दिखाई पड़ती है ।" 
आचार्य विनोबा भावे ;  " भूदान आंदोलन के जनक  "विनोबा जी जीवन पर्यन्त गाँधीवादी विचारों की सामाजिक सुधारों के लिए रचनात्मक कार्यों में परिणित करते रहे ।
लाला लाजपत राय ;" पंजाब केसरी व् शेर-ए -पंजाब " के  नाम से प्रख्यात लालाजी किसी परिचय के मोहताज नही है क्योंकि युवा क्रांतिकारियों , चंद्रशेखर आज़ाद ,भगत सिंह ,राजगुरू और सुखदेव नें जिन पर चलाई गई लाठियों का बदला लेने के लिए अपनी जान हथेली पर लेकर अंग्रेज़ी सरकार की जड़ें हिला दी थी । विपिन चन्द्र पाल ; " बाल-लाल -पाल "के नाम से ख्याति प्राप्त गरम-दल के राष्ट्रवादी नेता भारतीय क्रांतिकारी विचारों के जनक कहे जाते हैं ।
 करतार सिंह सराभा; अमरीका के बर्कले विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा पाने गए थे पर प्रवास के दौरान मिले तिरस्कार ने उन्हें अपने देश को स्वतंत्र करवाने की अदम्य इच्छा से भर दिया था । अमरीका में बनी गदर पार्टी के इस क्रांतिवीर को जब अंग्रेज़ी सरकार ने फाँसी दी थी तब इनकी आयु थी, साढ़े उन्नीस वर्ष।अमर शहीद भगत सिंह इनकी ग़ज़ल अपनी जेब में लिए रहते थे ।
बटुकेश्वर दत्त ;भगत सिंह के साथ केन्द्रीय विधान सभा में बम-विस्फोट  महान क्रांतिकारी दत्त  जी को लाहौर षड्यंत्र केस में कालेपानी की सज़ा पाने वाले बटुकेश्वर दत्त के विधान-परिषद में सहयोगी इंद्र कुमार ने कहा ," दत्तजी राजनैतिक महत्वाकांक्षा से दूर शांतचित एवं देश कि खुशहाली के लिए हमेशा चिंतित रहने वाले क्रांतिकारी थे ।
अब्दुल कलाम आज़ाद ; महात्मा गाँधीजी के सिद्धांतों का समर्थन करने वाले, अलग मुस्लिम राष्ट्र के विरोधी धारासन सत्याग्रह के अहम इंकलाबी आज़ाद भारत के पहले शिक्षा -मंत्री बने ।
              नवम्बर महीने से जुड़े इन क्रांतिवीरों को हमारा नमन  जिनका महत्व कभी कम नहीं होगा चाहे कोई उन को याद करे या ना करे । अपने देश की इस उदासीनता पर आज मुझे अमर शहीद भगत सिंह की वे पंक्तियाँ याद आ रही हैं जो उन्होंने जेल में लिखी थीं ।  - इन पंक्तियाँ में उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के राज में सामाजिक परिस्थितियों का विश्लेषण किया था पर आज भी ये समसामयिक हैं    :--------
             
 उसे यह फ़िक्र है हरदम ,नया तर्ज़े जफ़ा क्या है ?
  हमें  यह शौक देखें ,सितम की इन्तहा क्या है  ??        
                                                      *      

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