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शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

‘सआदत हसन मंटो’






















💐बड़े गौर से सुन रहा था जमाना
    तुम्ही सो गये दास्तां कहते कहते💐
             -साक़िब लखनवी का यह शेर ;
43 साल की उम्र में, 18 जनवरी 1955 में, इस दुनिया को
अलविदा कह गए ‘सआदत हसन मंटो’ पर खरा उतरता है !!
मेरी नज़र में,मंटो की कहानियों में समसामयिकता हर दौर में रहेगी।
उनकी कहानियां बंटवारे और उसके फौरन बाद के समय की हैं।
वे आज भी हमारे समाज की सच्चाई दिखाने वाला आईना है।
उन्होंने साहित्य के माध्यम से जीवन की विषमताओं और जटिलताओं
का वर्णन भी किया और मानवीय संवेदनाओं को भी पूरी बेबाकी से
अभिव्यक्ति दी।
आज के दिन अपनी मनपसंद लघुकथाओं व कहानी ”टोबा टेकसिंह ”के
अंतिम अंश से हम इंसानियत के पैरोकार, अपने प्रिय शब्द-शिल्पी
*सआदत हसन मंटो *को, शब्दाँजली अर्पित करते हैं🙏
               टोबा टेक सिंह🖋️
पागलों को लारियों से निकालना और उनको दूसरे अफसरों के हवाले
करना बड़ा कठिन काम था। कुछ तो बाहर निकलते ही नहीं थे, जो
निकलने को तैयार होते, उनको संभालना होता, क्योंकि इधर-उधर
भाग उठते थे। जो नंगे थे, उनको कपड़े पहनाए जाते थे तो वे फाड़कर
अपने शरीर से अलग कर देते। कोई गालियां बक रहा है। कान पड़ी \
आवाज सुनाई नहीं देती थी। पागल स्त्रियों का शोरगुल अलग था।
और सर्दी इतने कड़ाके की थी कि दांत से दांत बज रहे थे।
अधिकतर पागल इस तबादले को नहीं चाहते थे।इसलिए कि उनकी
समझ में नहीं आता था कि उन्हें अपनी जगह से उखाड़कर कहां
फेंका जा रहा है? थोड़े से वे जो सोच- समझ सकते थे, "पाकिस्तान
जिंदाबाद " के नारे लगा रहे थे।दो-तीन बार झगड़ा होते-होते बचा
क्योंकि कुछ हिंदुओं और सिखों को ये नारे सुनकर तैश आ गया था।
जब बिशनसिंह की बारी आई और जब उसको दूसरी ओर भेजने के
संबंध में अधिकारी लिखत-पढ़त करने लगे तो उसने पूछा -
"टोबा टेकसिंह कहां ? पाकिस्तान में या हिंदुस्तान में?"
संबंधित अधिकारी हंसा, बोला-"पाकिस्तान में। "
यह सुनकर बिशनसिंह उछलकर एक तरफ हटा और दौड़कर अपने
शेष साथियों के पास पहुंच गया। पाकिस्तानी सिपाहियों ने उसे पकड़
लिया और दूसरी तरफ ले जाने लगे, किंतु उसने चलने से साफ इनकार
कर दिया- "टोबा टेकसिंह कहां है?" और जोर-जोर से चिल्लाने लगा,
"ओपड़ दी गड़गड़ दी एनेक्सी दी बेध्याना दी मुंग दी दाल ऑफ टोबा
टेकसिंह एंड पाकिस्तान।"
उसे बहुत समझाया गया, "देखो, टोबा टेकसिंह अब हिंदुस्तान में चला
गया है-यदि नहीं गया है तो उसे तुरंत ही भेज दिया जाएगा।" किंतु वह
न माना। जब जबरदस्ती दूसरी ओर उसे ले जाने की कोशिशें की गईं
तो वह बीच में एक स्थान पर इस प्रकार अपना सूजी हुई टांगों पर खड़ा
हो गया, जैसे अब कोई ताकत उसे वहां से हटा नहीं सकेगी। क्योंकि
आदमी बेजरर था, इसलिए उसके साथ जबरदस्ती नहीं की गई, उसको
वहीं खड़ा रहने दिया गया और शेष काम होता रहा।
सूरज निकलने से पहले स्तब्ध खड़े हुए बिशनसिंह के गले से एक
गगनभेदी चीख निकली। इधर-उधर से कई अफसर दौड़े आए और
देखा कि वह आदमी, जो पंद्रह वर्ष तक दिन-रात अपनी टांगों पर खड़ा
रहा था, औंधे मुंह लेटा था। इधर कांटेदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था-
उधर वैसे ही कांटेदार तारों के पीछे पाकिस्तान। बीच में जमीन के उस
टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था टोबा टेकसिंह पड़ा था।
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