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शनिवार, 25 अप्रैल 2020

"परंतप परशुरामजी"

ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।।'
परशुरामजी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है।  वे धरती पर वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार करना चाहते थे। कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये।  कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेल कर नई भूमि का निर्माण किया इसी कारण कोंकण, गोवा और केरल में भगवान परशुराम वंदनीय है। वे इस जीव सृष्टि को इसके प्राकृतिक सौंदर्य सहित जीवन्त बनाये रखना था। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि, पशु पक्षियों, वृक्षों, पुष्पों-फलों और समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे। वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में और कर्म से एक क्षत्रिय बने। 
 भारतीय मान्यताओं में चिरंजीवियों में परशुराम जी का नाम लिया जाता है - - - -अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च विभीषणः।कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरंजीविनः॥'' 
अर्थात् : अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और भगवान परशुराम ये सभी चिरंजीवी हैं। द्वापर एवं त्रेतायुग के बाद यह कलयुग भी प्रतीक्षारत है कि परशुराम सा क्रांतदर्शी युगपुरुष आए और समसामयिक सांस्कृतिक मूल्यों को समाज में प्रतिस्थापित कर वर्तमान और भविष्य को दिशा दिखाए ! 
हमें, आज के समाज में ,भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के इस संक्रांति काल में, भगवान परशुराम की शास्त्र और शस्त्र के संतुलन की शक्ति की आवश्यकता शिद्दत से महसूस हो रही है।परंतप परशुरामजी के आगमन के लिए, यह युग राष्ट्रकवि दिनकर के स्वर में उद्घोष कर रहा है - - - - 
"जब किसी जाति का अहँ चोट खाता है,
पावक प्रचण्ड हो कर बाहर आता है ।
यह वही चोट खाये स्वदेश का बल है,
आहत भुजंग है, सुलगा हुआ अनल है ।
विक्रमी रूप नूतन अर्जुन-जेता का,
आ रहा स्वयं यह परशुराम त्रेता का।
यह उत्तेजित, साकार, क्रुद्ध भारत है,
यह और नहीं कोई, विशुद्ध भारत है ।"
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