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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

सिक्किम की प्रकृति की अविस्मरणीय छवि !!

सिक्किम : वैदिक काल से महाभारत के द्वापर युग तक जिस प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण अँचल को "किरात-देश" कहा जाता रहा  - - - - उस सिक्किम राज्य में कुछ वर्ष पहले  गंगटोक जाते समय हमनें प्रकृति का अभूतपूर्व चमत्कार देखा !! रोंगित-रोंगनीउ के संगम ('थे सुथा'अर्थात आप कब पहुंचे) >तीस्ता का, अभूतपूर्व दृश्य  हमें मंत्रमुग्ध कर गया.... रोंगित की फ़ेनिल फुफकारती सी लहरें और रोंगनीउ का मरकत-मणि सा हरा शांत जल... पर.... कँचनजंगा की ऊँची चोटियों से नीचे की ओर बहती इन नदियों का गुरुत्वाकर्षण के नियम के विरुद्ध वापस अपने उद्गम की ओर लौटने का राज़ वैज्ञानिकों के लिए तो एक रहस्य बना हुआ है... !! परन्तु
सिक्किम के अपने 'लेपचा साथियों'  से सुनी उनकी मान्यताओं में, युगों की आस्थाओं में रची-बसी लेपचाओं की कथाओं में सब कुछ दर्पण की तरह साफ़ -साफ़ दिखाई देता है....  !! आज भी नव-विवाहितों को बुज़ुर्गों द्वारा रोंगित-रोंगनीउ के समान अलौकिक प्रेम व अनंत सौभाग्य का आशीर्वाद दिया जाता है।
लेपचा लोककथा के अनुसार "ऐत्बू देबूरूम"(जगत जननी) नें पवित्र पर्वत कंचनजंगा पर पड़ने वाली ताज़ी बर्फ़ "छयू" से सृष्टि की रचना की। "ऐत्बू देबूरूम" नें ही पावन निष्पाप हृदय वाले "रोंगित-रोंगनीउ" की भी रचना की। 
रोंग्नीउ और रोंगित दोनों नदियों के रूप में थे। दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे। वे दोनों सबसे छुपकर मिलते थे परंतु साथ रहकर सदा एक दूसरे के संग रहना चाहते थे। उनको भय था कि उनके संबंध को अन्य लोग नहीं स्वीकारेंगे। अतः बहुत सोच विचार कर उन्होंने एक दिन यह निश्चय किया कि वे पर्वत से उतर कर नीचे के मैदान में अपना घर बनाएंगे। अपने निर्णय को पूरा करने के लिए उन्होंने निश्चित किया कि वे दोनों अलग-अलग अपने-अपने घरों से निकलेंगे और पुंज़ोक(वन भूमि या तराई) में मिलेंगे !
इससे पूर्व दोनों कभी अपने पर्वत वाले घर से नहीं निकले थे इसलिए वे तराई तक पहुंचने का रास्ता नहीं जानते थे। इसके लिए उन्होंने अपने मार्गदर्शक चुनने का फैसला किया। रोंगित ने रोंगनीउ के सामने इच्छा रखी कि वह तराई में अपनी प्रेमिका से प्रतीक्षा नहीं करवाना चाहता इसलिए पहले पहुंचना चाहता है ताकि उसका स्वागत कर सकें। रोंगित के इस भावुकता भरे प्रस्ताव को रोंगनीउ ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। सोच विचार कर रोंगित "टुटफ़ो पक्षी" को अपना मार्गदर्शक बनाएं क्योंकि पक्षी बिना किसी बाधा के अपने निश्चित स्थान पर शीघ्रता से पहुंच सकता है। रोंगनीउ ने अपने देर से पहुंचने की बात को ध्यान में रखकर "पारिल-बू" नामक नागिन को अपना पथ प्रदर्शक बनने के लिए सहायता मांगी।
निश्चित समय पर प्रेमी-प्रेमिका नें अपने-अपने घरों को त्यागा और अपने अपने साथियों के साथ पर्वत से नीचे की ओर चल पड़े। उन दोनों को अपने घर छोड़ने का दुख तो था परंतु भविष्य की कल्पना उनको उल्लास से भी भर रही थी। रोंगित बड़े ही आनंद से टूटफ़ो को देखता हुआ अपने रास्ते आगे बढ़ता रहा। पक्षी होने के कारण पर्वत पर सुंदर फलों औरअनाज को देखकर टूटफ़ो बार-बार अपना रास्ता बदल लेता था। मनचाहे भोजन को खोजने के लिए उसने मार्ग को लंबा कर दिया था। दूसरी ओर रोंगनीउ नागिन के साथ धीमी गति से चलती हुई सीधे रास्ते से पूज़ोक पहुंचकर रोंगित की प्रतीक्षा करने लगी।
रोंगित जब तराई में पहुंचा तो पहले से अपनी प्रेमिका को प्रतीक्षा करते हुए देख, अपना वचन पूरा ना करने के कारण उसके अहंकार को चोट लगी! क्रोध और ग्लानि से भर कर उसने पूछा- "थे सुथा" अर्थात आप कब पहुंचे ?पूरी लगन और परिश्रम से, पर्वत के कठिन मार्ग से उतरने के बाद भी, वचन के विफल होने की ग्लानि और क्रोध से भरकर रोंगित अपनी प्रेमिका से एक भी शब्द कहे बिना उस तराई से वापिस अपने घर की ओर लौटने लगा। लौटने के क्रम में  स्वयं को क्षति पहुंचाता और आसपास के चराचर जगत को नष्ट करता हुआ आगे बढ़ने लगा। रोंगनीउ अपने प्रेमी की मानसिक अवस्था को समझ कर उसे शांत करने की इच्छा से, चुपचाप उसका अनुसरण करने लगी। परंतु उसकी कोशिश से रोंगित द्वारा की जा रही विनाश लीला का वेग और बढ़ गया। सब कुछ उनकी लहरों में जलमग्न होने लगा। रोंगित के क्रोध और पीड़ा को दिल से महसूस करने वाली रोंगनीउ नें उसे शांत करने की भरपूर कोशिश की पर उसने उसकी सलाह को सुना ही नहीं। 
मायलीयांग का पूरा क्षेत्र इस जल प्रलय की चपेट में आ रहा था। पशु-पक्षी,जीव-जंतु, पेड़-पौधे, चट्टानें, यहां तक कि मनुष्य भी इन दोनों की विशाल जलधारा में समाने लगे। मनुष्य ने जो भी सामान साथ ले जाने में सक्षम थे पर्वतों की ऊंचाइयों पर शरण ली। परंतु जलस्तर रुका नहीं तो बचे हुए सभी जीवों नें  इत्बुमू (महान माता) से इस विनाश को रोकने के लिए एवं अपनी सुरक्षा के लिए प्रार्थना की। अपनी बनाई हुई प्रिय सृष्टि की रक्षा के लिए और सब और शांति बनाए रखने के लिए उन्होंने "कोहोम फ़ो"(तीतर) का रूप धारण कर सब के द्वारा चढ़ाई गई "छी"(चावल) की भेंट को स्वीकार  किया। लेपचा लोग आज भी तीतर की छाती के सफेद निशानों को लोगों द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद के निशान मानते हैं। सब की प्रार्थना को स्वीकार कर देवी ने जब रोंगित को शांत किया। जब वह होश में आया तो अपने द्वारा किए गए विनाश के लिए उसे बहुत पश्चाताप हुआ उसने सब से क्षमा मांगी। रोंग्नीउ मैं भी जगत जननी से क्षमा याचना की और इस बात को शिकार किया कि अपने प्रेमी रोंगित का हर हाल में साथ निभाने की इच्छा के कारण उसके द्वारा भी विनाश हुआ है। अपनी प्रिय संतानों की अनजाने में हुई इस भूमि को महान माता ने क्षमा कर दिया और आगे से ऐसी किसी घटना को भविष्य में ना करने के लिए सावधान किया।
रोंगित अपने मूर्खतापूर्ण के कारण ग्लानि से भर कर सिर झुकाए खड़ा था जिसे देखना रोंग्नीउ के लिए आसान नहीं था उसने अपने प्रेमी के निकट जाकर उसे सांत्वना दी और कहा कि स्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों ना हो जाए वह उसका साथ कभी छोड़ेंगी। जीवन के हर उतार-चढ़ाव में वो हमेशा साथ निभाएगी । रोंग्नीउ की भावनाओं को जानकर रोंगित नें चैन की सांस ली और आवेश में किए गए अपने कार्यों के कारण रोंग्नीउ की भावनाओं को पहुंचाई पीड़ा के लिए क्षमा मांगी। उसने प्रतिज्ञा की कि वह हर स्थिति में हमेशा रोंग्नीउ के साथ रहेगा। रोंगित-रोंगनीउ के प्रेम को देखकर जगत जननी नें उनके पावन संबंध के लिए युगल जोड़ी को आशीर्वाद दिया कि युगो युगो तक उनका प्रेम याद किया जाएगा। मां से अमरता का वरदान पाकर उन दोनों नें प्रसन्नता पूर्वक अपने नए जीवन में प्रवेश किया। आज भी उनकी अलग-अलग धाराएं बेशक रोंग्नीउ और रोंगित नाम से पुकारी जाती है परंतु जिस स्थान पर मिलकर वे दोनों आगे बढ़ते हैं वहां से उनको एक नाम से कि पुकारा जाता है- "थे सुथा" (आप कब पहुंचे) या तीस्ता !!
   रोंगित-रोंगनीउ व तीस्ता के वैज्ञानिक तथ्यों को खोजने की कोशिश विदेशी-देशी कई वैज्ञानिकों और बुद्धिजीवियों ने की है परंतु वे सब किसी भी निर्णय पर पहुँचें या ना पहुंच पाएं ! 
मेरा निजी मत है..... इनके निरुत्तर होने से..चिरन्तन भारतीय आस्थाओं को और अधिक बल मिला है।समग्र भारत-भूमि  पर हमारी अतुलनीय विरासत के कई पन्ने अभी सबके सामने खुल नहीं पाये हैं। आईए हम जिस जगह पर हैं वहीं रह कर, अपने स्थान के अनछुए पृष्ठ सबके सामने लायें और भारतीय संस्कृति के हर मोती को एकसूत्र में पिरोयें ।....... 

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