जाड़ों का मौसम

जाड़ों का मौसम
मनभावन सुबह

लोकप्रिय पोस्ट

लोकप्रिय पोस्ट

Translate

लोकप्रिय पोस्ट

रविवार, 26 अप्रैल 2020

संत बसवेश्वर

संत बसवेश्वर जी का जन्म, अक्षय तृतीया के पावन दिन, सन् ११३४ में कर्नाटक के बीजापुर ज़िले के बसवन बागेवाडी में हुआ था । बसवेश्वर जी बाल्यकाल से ही अत्यंत प्रतिभावान और सुसंस्कृत व्यक्ति थे। वे कल्याण-नगरी के राजा बिज्जल के प्रधानमंत्री और महादंडनायक भी बने । सामाजिक एवं धार्मिक असमानता के कारण भौतिक संसार से उनका मन ऐसा उखड़ा कि उन्होंने सामाजिक एवं धार्मिक सुधार का बीड़ा उठा लिया। श्री बसवेश्वर जी के अनुभव में जीवन का यथार्थ व दूरदर्शिता थी।वे ऐसे महान समाजसुधारक थे जो भारतीय समाज को अनाचार, धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, अंधश्रद्धा से भरे कर्मकांड, ढोंग और सांप्रदायिक उन्माद को मिटाकर सभी में एकता के भाव के प्रसार के लिए कृतसंकल्प थे।उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा - - - -
      "देवलोक मर्त्यलोक अलग नही है।
      सत्य वचन बोलना ही देवलोक।
      असत्य वचन बोलना ही मर्त्यलोक।
        सदाचार ही स्वर्ग, अनाचार ही नरक।
        आप ही प्रमाण हैं कूडलसंगमदेव !  "
१२ शताब्दी में, जब भारतीय धर्म के स्वच्छ और निर्मल आकाश में घिर आए ढोंग-पाखंड, हिंसा, अंधविश्वास तथा अंधश्रद्धा के कुहासों को चीर कर बसवेश्वर रूपी प्रकाशमान सूर्य का उदय हुआ।
श्री बसवेश्वर ने एक आदर्श धर्म एवं समाज की कल्पना की थी। वे मानवीय समाज के बेबाक, निष्कपट, निश्छल मन के भक्त कवि हैं।
महात्मा बसवण्णा मानते थे कि जिस समाज में या धर्म में शोषण न हो, जात-पात का भेद-भाव न हो, स्त्री-पुरुषों में असमानता न हो, घृणा-निंदा न हो तो मान लीजिए ऐसा समाज, ऐसा धर्म जहां होगा वहां निश्चित ही स्वर्ग का निर्माण होगा । श्री बसवेश्वर के वचनानुसार;हम अपने आराध्य ईश्वर का चिंतन ना करके, पशु-पक्षियों की बलि को अपने धर्म के पालन से जोड़ कर अपनी अंध - भक्ति का परिचय देते हैं धर्म पालन का नहीं। ऐसे ही एक संदर्भ में श्री बसवेश्वर जी ने कहा है:----
        “ पत्थर का नाग देखा
          तो ’दूध चढ़ा दे’ कहते हैं ।
          जीता नाग देखा,
          तो ’जान से मार दे’ कहते हैं ॥“
महात्मा बसवेश्वर के क्रांतिकारी विचार धारा से उनका समकालीन समाज तो बदल गया था परंतु हमारा आज का समाज,अपनी स्वार्थपरता में बारहवीं शताब्दी के इस क्रांतिकारी संत के विचारों को जिस दिशा में ले जा रहा है वह चिंता एवं चिंतन.... दोनों का विषय है। आज के भारतीय समाज में जहां जातिवाद की कुत्सित राजनीति, धार्मिक पाखंड का बोलबाला, सांप्रदायिकता की आग में झुलसता जनमानस और आतंकवाद का नग्न तांडव, तंत्र-मंत्र का मिथ्या भ्रम-जाल सब ओर दिखाई देता है तब संत बसवेश्वर जी की प्रासंगिकता और बढ़ गई है।

कोई टिप्पणी नहीं: