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सोमवार, 30 दिसंबर 2019

* महर्षि रमण *

वकील सुंदरम्‌ अय्यर और अलगम्मल के परिवार में ३० दिसम्बर १८७९ को तिरुचुली, मद्रास में जन्मे द्वितीय पुत्र-रत्न का नाम वेंकटरमण रखा गया। यही वेंकटरमण बीसवीं शताब्दी के महान संत *महर्षि रमण जी * हैं ।
यदि उन्हें  वैदिक संस्कृति के प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले के रूप में स्मरण किया जाय तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। उन्होंने अपने कठिन तप से ज्ञान और आत्मा की खोज की और उसे जागृत किया, उनके हृदय में जीव- जंतु और संसार रूपी इस दुनिया में सभी के प्रति दया भाव था। सभी के हित को लेकर चिंतन भी करते थे।जिन्हें आज अरुणाचल के प्रसिद्ध योगी, श्री महर्षि रमण के नाम से हम सभी जानते हैं। 
तिरूवन्नामलाई, महर्षि रमण जी का निवास था। इस पवित्र पर्वत की विरूपाक्षी गुफा में उन्होंने वर्षों कठोर तप किया है। पवित्र पर्वत अरूणाचलम् एवं इसकी तलहटी में बने आश्रम परिसर में कुछ लोग काम कर रहे थे। पूछने पर पता चला कि ये एच्छमा, मध्वस्वामी , रामनाथ ब्रह्मचारी एवं मुदलियर ग्रेनी हैं। इनमें से रामनाथ ब्रह्मचारी ने उनके ठहरने की व्यवस्था की और अन्नामलाई स्वामी से मिलाया।
सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्लगुस्ताव जुंग नें, भारत एवं भारतीय आध्यात्मिक साहित्य के बारे में काफी कुछ पढ़ा था। आध्यात्मिक जिज्ञासा की प्रबलता के साथ उनमें वैज्ञानिक अभिवृत्ति भी दृढ़ थी। वे आध्यात्मिक सत्यों को वैज्ञानिक रीति- नीति से अनुभव करना चाहते थे। यही जिज्ञासु भाव उन्हें भारत भूमि की ओर आकृष्ट कर खींच रहा था। इसी समय सन् 1938 के प्रारंभ में उन्हें भारत वर्ष की अंग्रेज सरकार की ओर से भारत आने के लिए आमंत्रण मिला।
महर्षि रमण के नाम से प्रभावित जुंग, तिरूवन्नामलाई के लिए चल पड़े। कार्लगुस्ताव जुंग नें शाम को महर्षि से मुलाकात की। महर्षि उस समय शरीर पर केवल कौपीन धारण किए हुए थे। अपनेपन से भरे उनके चेहरे पर बालसुलभ निर्दोष हँसी और आध्यात्मिक प्रकाश था। प्रख्यात् मनोवैज्ञानिक कार्ल जुंग को महर्षि अपने से लगे। हालांकि उनके मन में शंका भी उठी कि ये साधारण दिखने वाले महर्षि क्या उनके वैज्ञानिक मन की जिज्ञासाओं का समाधान कर पाएँगे ? 
उनके मन में आए इस प्रश्र के उत्तर में महर्षि ने हल्की सी मीठी हंसी के साथ कहा- भारतीय प्राचीन ऋषियों की आध्यात्म-विद्या सम्पूर्णतः वैज्ञानिक है। आधुनिक वैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक चिन्तन-चेतना के लिए इसे वैज्ञानिक अध्यात्म कहना ठीक रहेगा। इसके मूलतत्त्व पांच हैं:--
1)जिज्ञासा- इसे तुम्हारी वैज्ञानिक भाषा में शोध समस्या भी कह सकते हैं।
 2) प्रकृति एवं स्थिति के अनुरूप सही साधना विधि का चयन। वैज्ञानिक शब्दावली में इसे अनुसन्धान विधि भी कह सकते हैं। 
3) शरीर मन की विकारविहीन प्रयोगशाला में किए जाने वाले त्रुटिहीन साधना प्रयोग। वैज्ञानिक ढंग से कहें तो नियंत्रित स्थति में की जाने वाली वह क्रिया प्रयोग है, जिसमें सतत् सर्वेक्षण किया जाता है, Experiment is observation of any action under control conditions. उन्होंने मधुर अंग्रेजी भाषा में अपने कथन को दुहराया। 
4) किए जा रहे प्रयोग का निश्चित क्रम से परीक्षण एवं सतत् ऑकलन। 
 5)एवं अन्तिम इन सबके परिणाम में सम्यक् निष्कर्ष। 
महर्षि ने मृदुल- मधुर सहज स्वर में अपनी बातें पूरी की।  कार्ल जुंग सन्तुष्ट थे । 
महर्षि नें यह भी स्पष्ट किया-- “ मेरे आध्यात्मिक प्रयोग की वैज्ञानिक जिज्ञासा थी- मैं कौन हूँ ? इसके समाधान के लिए मैंने मनन एवं ध्यान की अनुसंधान विधि का चयन किया। इसी अरूणाचलम् पर्वत की विरूपाक्षी गुफ़ा में शरीर व मन की प्रयोगशाला में मेरे प्रयोग चलते हैं। इन प्रयोगों के परिणाम में अपरिष्कृत अचेतन परिष्कृत होता गया। चेतना की नयी- नयी परतें खुलती गयी।इनका मैंने निश्चित कालक्रम में परीक्षण व आकलन किया और अन्त में मैं निष्कर्ष पर पहुँचा, मेरा अहं आत्मा में विलीन हो गया। बाद में आत्मा-परमात्मा से एकाकार हो गयी। अहं के आत्मा में स्थानान्तरण ने मनुष्य को भगवान् में रूपान्तरित कर दिया। 
कार्ल जुंग के चेहरे पर पूर्ण प्रसन्नता और गहरी सन्तुष्टि के भाव थे।वैज्ञानिक अध्यात्म के मूल तत्त्व उन्हें समझ में आ चुके थे। 
महर्षि रमण से इस भेंट के बाद जब भारत से वापस लौटे तब वर्ष 1938 में उन्होंने येले विश्वविद्यालय में अपना  व्याख्यान दिया “मनोविज्ञान एवं धर्म ”। इसमें उन्होंने अपने नए दृष्टिकोण का परिचय था।बाद में उनकी विचारधारा में जो भी बदलाव आए हों परंतु अपनी पुस्तक  “ श्री रमण एण्ड हिज़ मैसेज टु मॉडर्न मैन ’’ के प्राक्कथन में अपनी ओर से लिखा- “ श्री रमण भारत भूमि के सच्चे पुत्र हैं। वे अध्यात्म की वैज्ञानिक अभिव्यक्ति के प्रकाशपूर्ण स्तम्भ हैं और साथ में कुछ अद्भुत भी। उनके जीवन एवं शिक्षा में हमें पवित्रतम् भारत के दर्शन होते हैं, जो समूची मानवता को वैज्ञानिक अध्यात्म के मूलमन्त्र का सन्देश दे रहा है।” 

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