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बुधवार, 25 दिसंबर 2019

*निक्कियां जिंदां वड्डा साका *श्रद्धासुमन ।



"चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊँ,
  गीदड़ों को मैं शेर बनाऊँ,
 सवा लाख से एक लड़ाऊँ
तब गोबिंद सिंह नाम कहाउँ।" 
भारतीय इतिहास के अद्वितीय भावपूर्ण पृष्ठ हैं दिसंबर माह के ये दिन! मुगल बादशाह औरंगज़ेब की लाख कोशिशों के बावजूद गुरु गोविंद सिंह जी ना तो धर्म परिवर्तन को तैयार हुए, ना ही उन्होंने मुग़लों की अधीनता स्वीकार की। 
   २० दिसंबर सन्‌ १७०४ को सिरसा नदी के किनारे चमकौर नामक जगह पर सिक्खों और मुग़लों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया जो इतिहास में “चमकौर का युद्ध” नाम से प्रसिद्ध है। इस समय नें साहिबज़ादों की शहादत की स्मृतियों को अपने अँचल में समेटा हुआ है। २० से २९ दिसंबर को विश्व- विख्यात "चमकौर- युद्ध" में दस हज़ार मुगल सैनिकों के विरुद्ध दशमेश गुरु गोविंद सिंह जी के केवल चालीस वीरों नें लोहा लिया था। इसमें गुरुजी के साहिबज़ादों, १७ वर्षीय  अजीत सिंह और १५ वर्ष के जुझार सिंह मुगलों के साथ युद्ध करते शहीद हुए। उन्होंने पावन गुरुवाणी की पंक्तियों - - - - 
‘सूरा सो पहचानिए, जो लरै दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरै, कबहू ना छाड़े खेत’  को पूरी सत्यता के साथ प्रमाणित किया।
इसी समय वजीर खां के सैनिकों नें माता गुजरी और ७ वर्ष के साहिबज़ादा जोरावर सिंह और ५ वर्ष की आयु के साहिबजादे फतेह सिंह को गिरफ्तार कर उन्हें ठंडे बुर्ज में रखा।पोष की उस ठिठुराती ठंड से बचने के लिए कपड़े का एक टुकड़ा तक नहीं दिया गया था।जोरावर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम कुबूल नहीं करने की वजह से ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया था। उनकी दादी माँ गुजरी कौर को किले के ऊंचे बुर्ज से धक्का देकर शहीद कर दिया गया। इस तरह देश और धर्म की रक्षा में गुरु गोबिंद सिंह महाराज का सारा परिवार शहीद कर दिया गया। गुरूजी नें अपने आशीर्वाद और अपनी वीरता से वजीर खान को अपने मंसूबो में कामयाब नहीं होने दिया और दस लाख मुग़ल सैनिक भी गुरु गोविंद सिंह जी को नहीं पकड़ पाए। यह युद्ध इतिहास में सिक्खों की वीरता और उनकी धर्म के प्रति आस्था के लिए जाना जाता है । गुरु गोविंद सिंह ने इस युद्ध का वर्णन “जफ़रनामा” में करते हुए लिखा। 
भारतीय संस्कृति की रक्षा को समर्पित इन महान शहीदों के महान बलिदान के सामने हम सभी नतमस्तक हैं।             🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

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