वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि, भगवान नृसिंह (नरसिंह) का प्राकट्य दिवस 🌷सबके जीवन में सकारात्मकता व सात्विकता का प्रसार करे 🙏🌹🌹🌹🌹
पद्म पुराणके अनुसार, भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नृसिंह, वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि को प्रकट हुए थे। कथा के अनुसार महर्षि कश्यप के पुत्र हिरण्यकशिपु ने कई वर्षों तक कठोर तप किया। ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर उसने वरदान प्राप्त किया कि उसे न कोई घर में मार सके न बाहर, न अस्त्र से और न शस्त्र से, न दिन में मरे न रात में, न मनुष्य से मरे न पशु से, न आकाश में न पृथ्वी में।वरदान प्राप्त करके हिरण्यकशिपु ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। देवताओं को मारकर भगा दिया और स्वत: संपूर्ण लोकों का अधिपति हो गया।
हिरण्यकशिपु नें स्वयं को सर्वोपरि घोषित कर, किसी भी अन्य कई उपासना को वर्जित कर दिया था। राक्षसराज हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद उसकी सत्ता को नकार कर भगवान विष्णु के प्रति समर्पित था।
अपनी सत्ता को मनवाने के लिए, पिता होते हुए भी हिरण्यकशिपु नें प्रहलाद पर कई अत्याचार किए और कई बार उसे मारने की कोशिश भी की। राक्षसराज ने जब अपनी बहन द्वारा भक्त प्रह्लाद को मरवाने की कोशिश की थी उस होलिका-दहन की कथा हम सब जानते हैं।
अत्याचारों की पराकाष्ठा होने पर अंत में भगवान विष्णु अपने भक्त को बचाने के लिए एक स्तंभ से नृसिंह रूप में प्रकट हुए । इनका आधा शरीर सिंह का और आधा इंसान का था। इसके बाद भगवान नृसिंह ने हिरण्यकशिपु को मार दिया।
प्रह्लाद के उस युग की कथा यहां समाप्त नहीं होती !
एक अकाट्य सत्य यह भी है कि शक्तियां सकारात्मक हों या नकारात्मक उनका नियंत्रण ही उनकी उपादेयता बनाए रखता है। भगवान नृसिंह द्वारा जब हिरण्यकशिपु का नाश हुआ तब एक नई समस्या जगत के सामने खड़ी हो गई। भगवान नृसिंह इतने क्रोध में थे कि प्रत्येक प्राणी अपने संहार के भय से कांपने लगा। स्वयं भक्त प्रह्लाद भी उनके क्रोध को शांत नहीं कर पाए।
सभी देव, मनुज, दनुज भयभीत हो भगवान ब्रह्मा की शरण में गए। परमपिता ब्रह्मा उन्हें लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि वे अपने अवतार के क्रोध शांत कर लें किंतु भगवान विष्णु ने ऐसा करने में अपनी असमर्थता बताकर भगवान शंकर के पास चलने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि चूंकि भगवान शंकर उनके आराध्य हैं इसलिए केवल वही नरसिंह के क्रोध को शांत कर सकते हैं। सभी भगवान शंकर के पास पहुंचे।सबके आग्रह पर आदिदेव महादेव नृसिंह का क्रोध शांत करने उनके समक्ष पहुंचे किंतु साक्षात भगवान शंकर को सामने देखकर भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ बल्कि वे स्वयं भगवान शंकर पर आक्रमण करने दौड़े।

शक्तिशाली शरभ नें नृसिंह को अपनी पूंछ से लपेटा और उसे खींचकर पाताल में ले गए। काफी समय तक शरभ नें नृसिंह को वैसे ही अपने पूंछ में जकड़ कर रखा। अपनी सारी शक्तियों और प्रयासों के बाद भी नृसिंह उनकी पकड़ से छूटने में सफल नहीं हो पाए। अंत में शक्तिहीन होकर उन्होंने शरभ रूप में भगवान शंकर को पहचाना। और तब नृसिंह की क्रोधाग्नि एकदम शांत हो गई और वे शिव के शरभावतार से क्षमा याचना के लिये उनकी स्तुति करने लगे।इस प्रकार भगवान शिव ने शरभ का अवतार धारण कर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि से सृष्टि की रक्षा की। नृसिंह का तेज श्रीहरि से एकाकार हुआ तो महादेव नें भी शरभ रूप त्याग ,अपने सर्वकल्याणकारी सदाशिव स्वरूप के सबको दर्शन दिए ! श्रीहरि नें महादेव से ,नृसिंह के मृत शरीर के चर्म को वस्त्र रूप में धारण करने का आग्रह किया ताकि क्रोध ,अहंकार आदि पाशविक शक्तियों पर नियंत्रण की आवश्यकता की गाथा को भारतीय संस्कृति युग-युगान्तरों तक स्मरण रखे ! सदाशिव नें मृगचर्म को अपना कर, नृसिंह - शरभ के लोककल्याण के संदेश को कालजयी बना दिया !! इस प्रकार देवताओं और प्रह्लाद युग के सभी सत्पात्रों को एक ही कालखंड में दो महान युगप्रवर्त्तक अवतारों के दर्शन हुए।
मेरी अवधारणा में भारतीय संस्कृति;भगवान नृसिंह रूप में रौद्र अवतार से-- भगवान शंकर के शरभावतार से इस सत्य की घोषणा करती है कि जब भी अहंकार या स्वार्थपूर्ण मानसिकता, समाज को अपनी सत्ता के आधीन करने को तत्पर हो जाती है तब संपूर्ण ऊर्जा और बुद्धि का सामंजस्य स्थापित कर पवित्र शक्तियां उसका समूल नाश करती हैं।
समस्त नकारात्मक प्रभावों के विनाश व सकारात्मकता के प्रसार को समर्पित नृसिंह अवतरण दिवस की
सबको हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🌷🌷🌷🌷
सबको हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🌷🌷🌷🌷
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