हमें हमेशा ही भगवान बुद्ध के तेजोमय व्यक्तित्व से प्रकाशित.. वैशाख की इस पूर्णिमा का प्रकाश अद्वितीय शांति से भरा लगता है । 'अपना दीपक आप बनो' बुद्ध का यह वाक्य हमें सारी परंपराओं को अपने वर्तमान परिवेश में तोल कर...... अपना मार्ग स्वयं चुनने का संदेश देता प्रतीत होता है।... और... डाकू अँगुलिमाल को कहा गया उनका वाक्य.. 'मैं तो ठहर गया तू कब ठहरेगा' !! जीवन की सच्ची राह पर चलने की प्रेरणा देता है..... उनके इन दो वाक्यों को, अपने दुविधा के क्षणों में प्रकाश स्तम्भ की तरह मार्ग दर्शक पाया है। भारत को विश्व गुरु के सिंहासन पर बिठाने वाले, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के इक्ष्वाकु कुल में जन्म लेकर पूर्वजों के अनुरूप परमार्थ के लिए स्वार्थ को तिलांजलि देने वाले, **** भगवान बुद्ध की अवधारणाओं के पावन प्रकाश को सर्वत्र प्रसारित करने वाले बौद्ध दर्शन का सुप्रसिद्ध सूत्र वाक्य हमें हमेशा यही वाक्य - - - - " अप्प दीपो भव " अर्थात 'अपना प्रकाश स्वयं बनो।' दैदीप्यमान प्रकाश-स्तंभ सा दिखाई देता रहा है। महापरिनिर्वाण से पूर्व तथागत गौतम बुद्ध के प्रिय शिष्य आनंद नें चिंतित स्वर में प्रश्न किया, "जब सत्य का मार्ग दिखाने के लिए आप या कोई आप जैसा पृथ्वी पर नहीं होगा तब हम कैसे अपने जीवन को दिशा दे सकेंगे ? तब भगवान बुद्ध ने उसे गंभीरतापूर्वक उत्तर दिया था, “अप्प दीपो भव। ”
मैं जब भी इस सूत्र पर विचार करती हूं मुझे भारतीय संस्कृति का चिरंतन वाक्य याद आ जाता है - - - -" चरैवेती - चरैवेती "।
बुद्धत्व के आलोक से प्रकाशित भगवान बुद्ध नें अपने शिष्यों को अपना दीपक स्वयं बनने का जो उपदेश दिया था वह चरैवेती---- का मार्ग है । कोई भी किसी के पथ पर सदा के लिए दीपक नहीं बन सकता। हम केवल स्वयं के आत्मज्ञान के प्रकाश से ही सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं। और - - - - मार्ग पर निरंतर गतिशील रहना आवश्यक है । यूं भी, दीपक किसी दूसरे के प्रकाश से चमकने वाला कोई आकाशीय ग्रह नहीं है। हाँ एक बार उसके तेल, उसकी बाती को अग्नि का स्पर्श मिल जाए तो फिर वह स्वयं भी प्रकाशित हो जाता है और दूसरों को प्रकाशित करने की क्षमता भी रखता है। - - - - सच्चे गुरु का यही उपदेश होता है। भगवान बुद्ध ने भी यही कहा था।
मैंनें कई बार इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास किया - - - - सिद्धार्थ को गौतम बुद्ध बनाने वाला गुरू कौन था ? हर बार मुझे इसका उत्तर - - " उनका स्वयं का अनुभूत सत्य" ही लगता है। शायद कुछ लोगों को मेरी बात में रुचि ना हो। परंतु मेरा अनुभूत सत्य यही कहता है कि उन्होंने अपने समान ही अपनें शिष्यों को भी अपने समसामयिक परिवेश के अनुभवो, दूसरों की पीड़ा को अपनी मानकर, अपनेअनुभूत सत्य के आधार पर आगे बढ़ने का,अपना दीपक स्वयं बनने का मंत्र दिया था। वे सच्चे गुरु थे!!!!
🙏 बुद्धं शरणम् गच्छामि!!!!
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