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गुरुवार, 25 जून 2020

मोगरे के महकते पुष्प !!

आषाढ़ का पावन महीना ,देवी-पूजन व नारायण की भक्ति से जुड़ा है | ऐसे में  प्रकृति भी वातावरण को सुगंध ,शुभ्रता से संवार रही है | 
सफ़ेद फूलों की अपनी भीनी-भीनी मधुर सुगंध से घर-आँगन के साथ तन-मन को महकाते मोतिया / मोगरे के पुष्प हमारे मनपसंद हैं! 
"जैसमिनम संबैक" प्रजाति का यह पौधा, मोगरा, मालती, मल्लिका, मोतिया, बेला आदि नामों से पुकारा जाता है।
भारत में इसे हिन्दी में बेला, मराठी में मोगरा, बांग्ला में बेली, गुजराती में मोगरो, कन्नड़ में डुंडुमलिगे, कोंकणी में मोगरे, मलयालम में कोडा मुल्ला, मणिपुरी में कोबक लेई, उड़िया में जुहीमाहली, संस्कृत में मल्लिका, प्राकृत में मल्लिआ, पंजाबी में मोतिया, तमिल में कुंदुमल्लि कहते हैं।
भारत और दक्षिण एशिया में उत्पन्न होने वाला यह पुष्प फिलिपीन का राष्ट्रीय पुष्प है। फिलीपीनी भाषा में इसे "संपागिता" कहते हैं जिसका अर्थ है मैं तुम को वचन देता/देती हूँ, इसी कारण इसे पारस्परिक प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है।इंडोनेशिया के तीन राष्ट्रीय पुष्पों में से एक है। इंडोनेशियाई भाषा में इसे 'मालती पुतिह'। फारसी में इसे 'यास्मीन' कहते हैं जिसका अर्थ है सुगंधित फूल। चीनी में 'मो ली हुआ' कहते हैं। मलेशिया की भाषा माले में इसे मेलुर या मेलाती तथा जापानी में मात्सुरिका कहते हैं। 
 समग्र दक्षिण एशियाई संस्कृति में, विभिन्न चिकित्सकीय गुणों से भरपूर ये मीठी सुगंध वाले श्वेत पुष्प , प्रेम, सद्भाव, शक्ति, सादगी, पवित्रता, विनम्रता और शुद्धता का प्रतीक माने जाते हैं।
भारत के सभी राज्यों के लोकगीतों में "मोगरा और बेला" का विशद वर्णन है।मोगरे के फूलों की मालाएँ ,गजरे और झालरें साधारण लोगों तथा देवताओं के श्रृंगार के मुख्य उपादान रहे हैं !!
 ब्रज के एक लोकप्रिय लोकगीत के बोल हैं :----
*ब्रज में बजत बधाई, मैं सुन के आई।
नन्द दुआरे नौबत बाजे,और बजे शहनाई,
मैं सुन के आई! 
रतन जड़े चन्दन पलने में,सोवे किशन कन्हाई , मैं सुन के आई! 
भर भर थाल मोगरा बेला,मालिनिया लै आई, मैं सुन के आई! 
बन्दनवार बना फूलन से,ड्योढ़ी दई सजाई, मैं सुन के आई !! *

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