📖अध्यात्मरामायणमाहात्म्यम् ब्रह्माण्डपुराण
पुरा त्रिपुरहन्तारं पार्वती भक्तवत्सला।
श्रीरामतत्त्वं जिज्ञासुः पप्रच्छ विनयान्विता ॥ १८।।
प्रियायै गिरिशस्तस्यै गूढं व्याख्यातवान् स्वयम्। पुराणोत्तममध्यात्मरामायणमिति स्मृतम् ॥ १९॥ अध्यात्मरामायणसङ्कीर्तनश्रवणादिजम् । फलं वक्तुं न शक्नोमि कार्त्स्न्येन मुनिसत्तम ॥ २७॥
तथापि तस्य माहात्म्यं वक्ष्ये किञ्चित्तवानघ। शृणु चित्तं समाधाय शिवेनोक्तं पुरा मम ॥ २८॥
अध्यात्मरामायणतः श्लोकं श्लोकार्धमेव वा। यः पठेत् भक्तिसंयुक्तः स पापान्मुच्यते क्षणात्।।२९।
एक समय नारद जी परानुग्रह की इच्छा से सम्पूर्ण लोकों में विचरण करते हुए सत्य लोक में पहुुँचे।उन्होंने लोकोपकार हेतु ब्रह्माजी से प्रश्न किया कि घोर कलयुग आने पर मनुष्य पुण्य से रहित, दुराचार में प्रवृत्त और सत्यभाषण से विमुख होगा। व्यक्तिगत, पारिवारिक, मर्यादापूर्ण आचरण से विहीन, शरीर के स्तर पर ही भौतिकता में आत्मतुष्टि रखने वाले, मूढ़, नास्तिक, हिंसक, पशुबुद्धि अर्थात् आहार- विहार, में ही तत्पर, रहनेवाले मूढ़ बुद्धि मानवों का उद्धार कैसे होगा ? इस प्रकार की चिन्ता से मेरा मन निरन्तर व्याकुल रहता है। आप सर्वज्ञ हैं अतःआप ऐसे स्वल्प उपाय बताइए जिन्हें करने से इन प्राणियों को सद्गति मिले।
महर्षि नारद की कलयुग के मानवोद्धार के लिए करुण वाणी सुनकर कमलासन ब्रह्माजी बोले, - - - - "हे साधु ! तुमने अति उत्तम, बहुत श्रेष्ठ प्रश्न पूछा है अतः आदर सहित सुनो ।
पूर्वकाल में भक्तवत्सला पार्वतीजी ने श्रीरामतत्त्व अर्थात श्री राम का यथार्थ स्वरूप जानने की इच्छा से त्रिपुरारी श्री शिवजी से विनयपूर्वक प्रश्न किया।अपनी प्रिया के पूछने पर गिरीश श्रीशंकर जी ने स्वयं गूढ़
रामतत्त्व का व्याख्यान उन्हें सुनाया।
श्रीशंकरजी द्वारा वर्णित गूढ़ 'रामतत्व’ पुराणों में उत्तम "अध्यात्मरामायण" नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस अध्यात्मरामायण का जगद्धात्री पार्वती जी पूजन कर अहर्निश मनन करती हुई आत्मानन्द
में आज भी मग्न हैं।
प्राणियों के अदृष्ट भाग्यवश जब संसार में "अध्यात्मरामायण" का प्रचार होगा तब उसके अध्ययन मात्र से प्राणी सद्गति प्राप्त करेंगे।"
अखिल सृष्टि के सृजनकर्त्ता ब्रह्मा जी नें अध्यात्मरामायण के अंतर्गत श्रीराम जी के लक्ष्मण जी से आध्यात्मिक चर्चा *श्रीरामगीता* के संबंध में नारदजी से कहा - - - -" मुने ! श्रीरामगीता के सम्पूर्ण माहात्म्य को श्री शंकर जी जानते हैं, उसका आधा पार्वती जी और उसका आधा मैं जानता हूँ।
रामेणोपनिषत्सिन्धुमुन्मत्थ्योत्पादितं मुदा। लक्ष्मणायार्पितां गीतासुधां पीत्वाऽमरो भवहत् ॥ ४९॥
श्रीरामचन्द्रजी ने उपनिषद् रूपी समुद्र का मन्थन कर श्रीरामगीता
रूपी अमृत को निकालकर लक्ष्मण जी को दिया। इस रामगीता रूपी अमृत का पान कर व्यक्ति अमर हो जाता है ॥४९॥
बहुना किमिहोक्तेन शृणु नारद तत्त्वतः । श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासागमशतानि च।अर्हन्ति नाल्पमध्यात्मरामायणकलामपि ॥ ५९॥
हे नारद ! अधिक कहने से क्या ? तत्त्व को सुनो। श्रुति, स्मृति, पुराण
इतिहास, सैकड़ों शास्त्र यह सब अध्यात्मरामायण की अल्प कला की भी बराबरी नहीं कर सकते ॥५९ ॥
अध्यात्मरामचरितस्य मुनीश्वराय माहात्म्यमेतदुदितं कमलासनेन । यः श्रद्धया पठति वा शृणुयात् स मर्त्यः प्राप्नोति विष्णुपदवीं सुरपूज्यमानः ॥ ६०॥
ब्रह्माजी द्वारा महर्षि नारदजी के निमित्त प्रतिपादित श्रीअध्यात्मरामायण का जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक पाठ करता है अथवा श्रवण करता है, वह देवताओं से पूजित होकर विष्णुलोक को प्राप्त करता है।
// ॐ जय जय सियाराम //
// ॐ उमामहेश्वराय नमः //
भारतीय संस्कृति की इस सनातन परम्परा के दर्शन हमे देवभूमि केरल में होते हैं जहां*अध्यात्मरामायणम्* का सामाजिक अनुष्ठान होता है।
"कारक्कीदकम" , मलयालयम कैलेंडर का आखिरी महीना, केरल के सभी मंदिरों में "रामायण मासम्" के रूप में मनाया जाता है। राज्य के घरों और मंदिरों में 30 दिनों तक आध्यात्म रामायण के पठन- पाठन, नाट्य-नृत्य की प्रस्तुतियों को समर्पित है यह पूरा महीना। मध्यकाल के भक्तकवि,मलयालम साहित्य के पुरोधा....तुनवत्तेषुत्तच्चन नें मलयालम में जिस उत्कृष्ट कृति की रचना की, उसी "अध्यात्म रामायण" का संगीतमय सुमधुर वाचन १७ जुलाई से १६ अगस्त तक देवभूमि केरल में अलौकिक वातावरण की सृष्टि करता हुआ अपनी प्राचीनतम सांस्कृतिक परंपरा को वर्तमान में भी अक्षुण्ण बनाये रखने का उदघोष कर स्वराँजलि भी देता है।
🪔🪔🙏नमन देवभूमि केरल को....!! और हार्दिक शुभकामनाएँ रामायण मासम् की !!
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