"माता सुवर्चला देवी, पिता मे वायुनंदनः" है ना आश्चर्यजनक !!
हैदराबाद से लगभग २२० कि. मी. की दूरी पर तेलंगाना राज्य के खम्मम ज़िले के प्राचीन मंदिर में भगवान हनुमान अपनी पत्नी सूर्य पुत्री तपस्विनी सुवर्चला के साथ विराजित हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त भगवान हनुमान और उनकी पत्नी के दर्शन करता है,उनके वैवाहिक जीवन की सभी कठिनाइयों का शमन हो जाता है। स्थानीय लोग ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हनुमान जी के विवाहोत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं।

तस्मिन कलियुगे घोरे किं सेव्यं शिवमिच्छताम्
पूर्वकर्मविपाकेन ये नराः दुखभागिनः।। ५
इस घोर कलयुग में पूर्व जन्म के कर्म वर्ष जो मनुष्य दुखी हैं वह अपने कल्याण हेतु क्या उपाय करें।। महर्षि पराशर और मैत्रेय के संवाद के रूप में ,हनुमान जी के महत्व को वर्णित किया गया है। ताड़ के पत्तों पर लिखे गए इस ग्रंथ का प्रचलन दक्षिण भारत में प्राचीन समय से था। इस ग्रंथ के प्रथम पटेल में के दूसरे श्लोक में कहा गया है " एक बार सुखासन में विराजमान निष्पाप तपोमूर्ति पराशर महामुनी से उनके शिष्य मैत्रेय ने प्रश्न किया - - - -
इस घोर कलयुग में पूर्व जन्म के कर्म वर्ष जो मनुष्य दुखी हैं वह अपने कल्याण हेतु क्या उपाय करें।। महर्षि पराशर और मैत्रेय के संवाद के रूप में ,हनुमान जी के महत्व को वर्णित किया गया है। ताड़ के पत्तों पर लिखे गए इस ग्रंथ का प्रचलन दक्षिण भारत में प्राचीन समय से था। इस ग्रंथ के प्रथम पटेल में के दूसरे श्लोक में कहा गया है " एक बार सुखासन में विराजमान निष्पाप तपोमूर्ति पराशर महामुनी से उनके शिष्य मैत्रेय ने प्रश्न किया - - - -
तस्मिन कलियुगे घोरे किं सेव्यं शिवमिच्छताम्
पूर्वकर्मविपाकेन ये नराः दुखभागिनः।। ५
इस घोर कलयुग में पूर्व जन्म के कर्म वर्ष जो मनुष्य दुखी हैं वह अपने कल्याण हेतु क्या उपाय करें।।
वे आगे कहते हैं की हे कृपा निधि कौन सा लघु उपाय हैं जिससे सभी सिद्धियां तुरंत प्राप्त हो जाए कृपया मुझे शिष्य समझ कर बताएं। उत्तर में महर्षि कहते हैं तीर्थयात्रा के लिए सरयू तट पर आए हुए हमारे पितामह वशिष्ठ ने प्रसंगवश मुझे सद्यसिद्धि प्रदान करने वाली विद्या का उपदेश कृपापूर्वक प्रदान किया। १३।
वे बताती हैं कि कलयुग में महावीर हनुमान जी की भक्ति आराधना शीघ्र फलदाई होगी। आगे इसी प्रसंग में महर्षि पराशर हनुमान जी का वर्णन करते हुए बताते हैं कि ज्ञान के प्रति अपनी तीव्र पिपासा के कारण, माता अंजना की आज्ञा लेकर हनुमान ज्ञानार्जन के लिए सूर्य मंडल में जाते हैं। वहां वे सूर्यदेव से अत्यंत विनम्रता पूर्वक अपने गुरु के पद का दायित्व वहन करने की प्रार्थना करते हैं। सूर्य देव उन्हें वेद-वेदांगों का विशद-ज्ञान प्रदान करते हैं। नव-व्याकरण (९व्याकरण/आज केवल एक पाणिनी व्याकरण है उस समय ९ थे।) की शिक्षा के लिए उनका गृहस्थ होना आवश्यक था और हनुमान जारी रहने का संकल्प ले चुके थे इसलिए त्रिमूर्ति ब्रह्मा विष्णु महेश नें सूर्य के वर्चस (ऊर्जा व प्रकाश) से एक कन्या का निर्माण किया जो सूर्य के वर्चस से निर्मित होने के कारण सूर्य पुत्री सुवर्चला कहलाई।
विवाह के प्रस्ताव को हनुमान द्वारा अस्वीकृत करने पर गुरु सूर्यदेव नें हनुमान जी को बताया कि यह कन्या आयोनिजा और तपस्विनी है। मेरे वर्चस से उत्पन्न इसके तेज को केवल आप ही सहन कर सकते हैं। विवाह के बाद भी आप ब्रह्मचारी ही रहेंगे। यह विवाह विश्व कल्याण के लिए है क्योंकि ऐसा करके आप अपना इच्छित ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और सूवर्चला भी अपने तपश्चर्य को निर्विघ्न पूरा कर पाएगी। सूर्य देव ने अपने इसके हनुमान से, गुरु-दक्षिणा के रूप में सुवर्चला से विवाह की मांग की तो हनुमान जी ने गुरु आज्ञा को शिरोधार्य कर विवाह की स्वीकृति दे दी। जेष्ठ शुक्ल की दशमी को दोनों का विवाह संपन्न हुआ। विवाह के बाद हनुमान जी ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और सुवर्चला अपनी तपस्या पूर्ण करने में लीन हो गई। - - - - और भक्तों की आस्था नें, महापराक्रमी हनुमानजी के सुवर्चला (उष्ट्रवाहिनी) सहित, चतुर्भुज स्वरूप को अपनी पारिवारिक सुख समृद्धि का आराध्य बनाकर पूजा है।
उष्ट्रा रोध्या वीराया मंगलम् श्री हनुमंते।"
परवर्ती अनेक साहित्यों में पराशर संहिता का उल्लेख कई संदर्भों में हुआ है।
शौनक संहिता में भी - - - -
"आगच्छ हनुमद्देव त्वं सुवर्चला सह" - - - - कहकर हनुमान जी का आह्वान किया गया है।
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