जाड़ों का मौसम

जाड़ों का मौसम
मनभावन सुबह

लोकप्रिय पोस्ट

लोकप्रिय पोस्ट

Translate

लोकप्रिय पोस्ट

बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

माँ शबरी के जन्मदिवस पर - - - -


फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी-जयंती मनाई जाती है। श्रीराम जी की परम भक्त शबरी माई की जो कथा, हम नें बचपन से सुनी,स्थानीय रामलीलाओं और दूरदर्शन के रामायण धारावाहिक के माध्यम से देखी थी ; उसके भावपूर्ण प्रसंग में - - - - श्रीराम जी को अपने झूठे बेर खिलाने वाली शबरी, सबसे दृष्टि बचा कर बेर फेंकते लक्ष्मण एवं उन फेंके गए बीजों से उस संजीवनी बूटी का बनना जिससे शक्ति लगने पर मूर्छित लक्ष्मण की प्राणरक्षा - - - - से हम परिचित रहे।
बड़े होने पर जब स्वयं रामकाव्य को पढ़ते हुए समझना शुरू किया तो ज्ञात हुआ कि वाल्मीकि रामायण, आध्यात्म रामायण एवं तुलसी - रामचरितमानस आदि ग्रंथों में ये प्रसंग है ही नहीं। वहां तो बेर का नहीं, वन के फलों व कंद मूल का वर्णन है। 
पारसी रंगमंच के चर्चित नाटककार व जनकवि , राधेश्याम कथावाचक जी अपनी रामायण में लिखते हैं ----
 "सुंदर पत्तों ते आसन पर अपने प्रभु को बैठाती है। 
मेहमानी के कुछ बेरों को डलिया में भर कर लाती है।। 
जूठे बेरों को बेर बेर खुश हो कर भोग लगाते हैं।
ला बेर बेर क्यों बेर करे यह बेर सुधा से बढ़ कर हैं। 
मक्खन मिसरी से भी अच्छे, ताकतवर मधुर मनोहर हैं। 
शबरी काहे करत है बेर, मोंको बेर बेर दे बेर गुठली फैंकत सकुच लगत है, हैं प्रेमिनि के बेर।
राधेश्याम धन्य भइ शबरी और धन्य भए बेर ।।
फिर राम लक्ष्मण से भी बेर खाने का बेर खाने का अनुरोध करते हैं –
लक्ष्मण तुमने खाया न बेर, देखो कैसा तो मीठा है।
पृथ्वी से ले आकाश तलक जो कुछ है इससे फीका है। 
राधेश्याम कथावाचक जी स्वीकार करते हैं कि 'वे फल शबरी के जूठे थे यह लिखा सूर सागर में है!' कृष्ण भक्त की एक पंक्ति को आधार बनाकर, रामकथा में यह प्रसंग यहां कविकल्पना से जन्मा दिखाई देता है।
रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास जी नें जन- जन में लोकप्रिय रामचरितमानस में लिखा - 
"सबरी देखि राम गृह आए।मुनि के वचन समुझि मन भाए।।
सरसिज लोचन बाहु विसाला।जटा मुकुट सिर उर वनमाला।
स्याम गौर सुंदर दोउ भाई। सबरी परी चरन लपटाई।।
प्रेममगन मुख वचन न आवा। पुनि पुनि पदसरोज सिर नावा।
सादर जल लै चरन पखारै। पुनि सुंदर आसन बैठारे।।
कंदमूलफल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि।
प्रेम सहित प्रभु खाये, बारंबार बखानि।। "
महर्षि वाल्मिकी रचित रामायण के अनुसार 
शबरी को श्रमणी, सिद्धा और तपस्विनी कहा गया है। वह शबर जाति की थी और मुनि मतंग की सेवा  करती थी। वे अपने तपोबल से सिद्धा और तपस्विनी के रूप में विख्यात थीं। राम और लक्ष्मण को आया देख कर वे उठी और उनके पैर पकड़ लिए। राम इस सिद्धा तपस्विनी श्रमणी शबरी से पूछते हैं कि आपकी तपस्या कैसी चल रही है। तप में कोई विघ्न तो नहीं है।
"तौ पुष्करिण्याः पम्पायास्तीरमासाद्य पश्चिमम्।
अपश्यतां ततस्तत्र शबर्या रम्यमाश्रमम्।।
तौ तु दृष्ट्वा ततः सिद्धा समुत्थाय कृताञ्जलिः।
पादौ जग्राह रामस्य लक्ष्मणस्य च धीमतः।।
समुवाच ततो रामः श्रमणीं संशितव्रताम्।
कच्चित्ते निर्जिता विघ्नाः कच्चित्ते वर्धते तपः।। 
शबरी कहती हैं कि मैं आपकी ही प्रतीक्षा करती रही हूँ। मैंने आपके लिये इस पंपा सरोवर के किनारे उगने वाली  वन की अनेक वस्तुएँ एकत्र कर रखी हैं –
"मया तु विविधं वन्यं संचितं पुरुषर्षभ।
तवार्थे पुरुषव्याघ्र पम्पायास्तीरसम्भवम्।।" 
इसके बाद श्रीराम ने विज्ञान में अबहिष्कृत शबरी से कहा कि तुमने जिस वन को संवर्द्धित किया है हम उसे देखना चाहते हैं। यहाँ शबरी को विज्ञान में अबहिष्कृत अर्थात् तरह तरह की शिल्प, शास्त्र और कलाओं को जानने वाली कहा गया है।शबरी ने अपनी वह विस्तीर्ण वन दोनों भाइयों को दिखाया
"शबरी दर्शयामास तावुभौ तद्वनं महत् " 
शबरी ने मतंगवन दिखाया और अपने वन में लगाए हुए भांति - भांति के फल उन्हें अर्पित किए। इस प्रसंग का मात्र एक पंक्ति में फल अर्पित करने का वर्णन महर्षि वाल्मीकि जी ने किया है। 
माँ शबरी के रामकथा में वर्णित व्यक्तित्व में  आध्यात्मिकता के सूर्य का तेज, पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता व भक्ति की ऐसी पराकाष्ठा है जो भारतीय नारी की गरिमा का प्रत्यक्षीकरण करवाती है।
🌷 भारतीय संस्कृति की महान विभूती के जन्मदिवस पर कोटि-कोटि नमन व विनम्र श्रद्धासुमन समर्पित हैं ।🙏🌷🌷

कोई टिप्पणी नहीं: