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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

धन्वंतरि त्रयोदशी :सर्वत्र आरोग्यता और शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक शुचिता का पर्व।

धन्वंतरि त्रयोदशी सर्वत्र आरोग्यता और शारीरिक-मानसिक-आध्यात्मिक शुचिता का वरदान लाए। 🙏🌷
समुद्र-मंथन के विश्वविख्यात कथानक में,कार्त्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी, भगवान धन्वन्तरी जी को समर्पित है।
समुद्र-मंथन " देवताओं और दैत्यों के सामूहिक   प्रयास से हुआ था---- यह एक विश्वप्रसिद्ध घटना मानी जाती है । इसके पीछे की प्रतीकात्मकता चाहे  "मिल्की-वे" की खगोलीय घटना से जुड़े या धरती की ज्योतिषीय स्थितियों से - - - - परंतु इसके साधारण अभिधेयार्थक कथानक में इस "मंथन" से हलाहल, कामधेनु, उच्चैश्रवा, ऐरावत, अप्सराएँ , वारुणि, कौस्तुभमणि, कल्पवृक्ष, चंद्रमा, लक्ष्मीजी आदि के प्राकट्य के साथ-साथ हाथ में अमृत से परिपूर्ण स्वर्ण कलश लिये  " धन्वंतरि " प्रकट हुए हैं । अमृत के वितरण के पश्चात् देवराज इंद्र की प्रार्थना पर भगवान धन्वंतरि ने देव-वैद्य का पद स्वीकार कर लिया। अमरावती उनका निवास बनी। कालक्रम में जब पृथ्वी पर मनुष्य रोगों से अत्यन्त पीड़ित हो गये तब  देवराज इंद्र ने धन्वंतरि जी से प्रार्थना की। काशी के राजा दिवोदास को उनका अवतार (वंशज) कहा जाता है। इनकी 'धन्वंतरि-संहिता' आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आचार्य सुश्रुत ने इनसे ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के प्रणेता तथा वैद्यक शास्त्र के देवता के रूप में जाना जाता है। 
ऋग्वेद में आयुर्वेद का उद्देश्य, वैद्य के गुण-कर्म, विविध औषधियों के लाभ तथा शरीर के अंग और अग्निचिकित्सा, जल-चिकित्सा, सूर्य-चिकित्सा, शल्य- चिकित्सा, विष-चिकित्सा आदि का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है।ऋग्वेद में ६७ आयुर्वेद की औषधियों का उल्लेख मिलता हैं। 
यजुर्वेद में आयुर्वेद से सम्बन्धित निम्नांकित विषयों का वर्णन प्राप्त होता है : विभिन्न औषधियों के नाम, शरीर के विभिन्न अंग, वैद्यक गुण-कर्म चिकित्सा, निरोगता, तेज वर्चस् आदि। इसमें ८२ औषधियों का उल्लेख दिया गया है।वेदों में आयुर्वेद से सम्बन्धित सैकड़ों मन्त्रों का वर्णन है, जिसमें विभिन्न रोगों की चिकित्सा का उल्लेख है। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद - इन चारों वेदों में अथर्ववेद को ही आयुर्वेद की आत्मा माना गया है।अथर्ववेद में सर्वाधिक २८९औषधियों का उल्लेख किया गया है। 
   महर्षि व्यास द्वारा रचित 'श्रीमद्भागवत ' के अनुसार धन्वन्तरि को भगवान विष्णु का अंश व अवतार कहा गया है। 'महाभारत 'में उन्हें लोक-कल्याण के लिए अवतार  लेने वाला बताया गया है।
   भारतीय सामाजिक जीवन में पर्वों की एक अटूट परंपरा सदियों से विद्यमान है। पृथ्वी के आदि वैद्याचार्य धन्वंतरी जी महाराज की जयंती है। अपने मौलिक रूप में यह रोग रहित स्वस्थ जीवन की कामना का पर्व है। निरोग शरीर ही जीवन का सबसे बड़ा धन है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से वैद्यराज धन्वंतरि अमृत कलश के साथ अवतरित हुए थे। इसी की स्मृति में 'धन्वंतरि - त्रयोदशी' का पर्व अस्तित्व में आया, जो कालांतर में अपभ्रंश में बदलकर 'धनतेरस' के रूप में हमारी परंपरा का अभिन्न अंग बन गया। पौराणिक प्रसंग के अनुसार, समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरी जी ने अपने प्राकट्य के उपरांत नारायण भगवान से आग्रह किया -'भगवन्, मुझे आवास और यज्ञों में भाग प्राप्त करने की व्यवस्था दें।' इस पर ईश्वर ने कहा- 'सौम्य, तुम्हें द्वितीय जन्म में सार्थकता प्राप्त होगी, तब तुम्हें धरती पर अक्षय यश और देवत्व प्राप्त होगा।' तदनुसार हरिवंश पुराण के अनुसार, महर्षि दीर्घतमा के पौत्र एवं धन्व के पुत्र हैं - धन्वंतरी।
काश्यप और सुश्रुत संहिताओं में भगवान धन्वंतरि को, 'आदि देव ' कहा गया है। आयुर्वेद के प्रचार, प्रसार और निरंतर संवर्द्धन के लिए समर्पित आचार्यों को, धन्वंतरी मानते हुए भारतीय मनीषा अवतार ही मानती आई है। इस संदर्भ में धन्वंतरि, काशीराज और दिवोदास की विशेष चर्चा मिलती है। दिवोदास धन्वंतरि ने शल्य प्रधान अष्टांग आयुर्वेद का प्रवर्तन किया और विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत सहित आठ शिष्यों को इसके प्रसार का दायित्व दिया। कालांतर में धन्वंतरी की एक परंपरा विकसित हुई है। योग्य आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि के ही नाम से विख्यात होने लगे। उज्जैन के विश्वविख्यात सम्राट विक्रमादित्य के नौ रत्नों में जिन धन्वंतरी का प्रमाण मिलता है वे इसी परंपरा का प्रमाण देते हैं। धन्वंतरी परंपरा के अंतर्गत आयुर्वेद में औषधि विज्ञान के क्षेत्र को इतना व्यापक बनाया गया था कि प्रायः सभी रोगों का निदान व उपचार इसमें समाहित था। आयुर्वेदाचार्यों की ख्याति देश-देशांतरों में फैली थी। इसके लिखित दस्तावेज हैं कि रोम, मिश्र, फारस, यूनान तक के रोगी इनके पास आते थे । आयुर्वेद  आचार-विचार और प्रकृति के साथ उचित समन्वय स्थापित कर स्वास्थ्यपूर्ण जीवन के मूलमंत्रों से जन-जन को परिचित कराता है।
प्राचीन काल में धन्वंतरी - त्रयोदशी का दिन विधि- विधान से भगवान धन्वंतरी की सामूहिक पूजा- अर्चना और आयुर्वेद के विकास के संबंध में गंभीर सत्रों एवं संगोष्ठियों के आयोजनों को समर्पित होता था जिसमें आयुर्वेदाचार्यों द्वारा स्वास्थ्य संबंधी सामाजिक समस्याओं और अनुभवों का आदान प्रदान करते थे।
मेरा निजी मत है कि बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशकों से निहित स्वार्थों के कारण आयुर्वेद का अवमूल्यन किया गया है । वास्तव में वर्तमान समय में, हमारी सहस्राब्दियों पुरानी प्रकृति के संतुलन से जुड़ी आहार-व्यवहार की परंपरागत पद्धतियों को विश्व अपना रहा है। 
भारतीय संस्कृति का प्रत्येक पर्व अपने धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ लोक मंगल और मूल्यों की व्यवस्था से जुड़ा रहता है।आरोग्यता की अकाट्य विरासत से जुड़ा " धन्वंतरी त्र्योदशी '' का पावन पर्व "धनतेरस " के अपभ्रंश नाम से जुड़ा जो लोक में इस उत्सव की लोकप्रियता एवं  मान्यता का प्रमाण है।
वर्तमान की बाजारवादी सभ्यताओं नें "धन" को मात्र भौतिक संपन्नता से जोड़कर सोना- चांदी - स्टील और विभिन्न धातुओं के आभूषणों व बर्तनों की खरीददारी से जोड़ दिया गया है जिसने दैहिक, मानसिक व आध्यात्मिक विकास से जुड़े आयुर्वेद से धन्वंतरी त्र्योदशी का संबंध ही दूर कर दिया है।
इस दिशा में एक प्रयास आज के दिन को वर्ष २०१७ से "आयुर्वेद - दिवस"  के रूप में मनाने की घोषणा ने तो किया है परंतु मीडिया के माध्यम से इसे कोई स्थान नहीं दिया जा रहा है।
तो आईए कोरोना काल से सबक लेकर भारतीय संस्कृति के धन्वंतरी-त्रयोदशी के वास्तविक मूल्यों को पुनः स्थापित करें - - - - और आज दक्षिण दिशा में ' यमदीपक ' प्रज्ज्वलित कर, मृत्यु के भय से विमुक्त होकर, स्वस्थ जीवन जीने हेतु भगवान धन्वन्तरी के आह्वान के लिए उद्घोष करें :----
"सत्यं च येन निरतं रोगं विधूतं,अन्वेषित च सविधिं आरोग्यमस्य।
गूढं निगूढं औषध्यरूपम्, धन्वन्तरिं च सततं प्रणमामि नित्यं।।"
भगवान धन्वंतरी के अवतरण की त्रयोदशी  प्राणी-मात्र के जीवन को आरोग्यता से परिपूर्ण करने का संदेश देती है।
 धन्वंतरी त्रयोदशी सभी को आरोग्यता और स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे.... शुभकामनाएँ।
                            🙏स्वर्ण अनिल ।।

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