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गुरुवार, 15 जून 2023

नववर्ष **** स्वतंत्रता दिवस वाले अगस्त माह में नववर्ष का प्रश्न हमारे मन में इसलिए आया क्योंकि अगस्त महीने का नाम हमारे भारतीय महर्षि अगस्त्य से नहीं रोमन राजा आगस्टस सीजर से जुड़ा है। वही आगस्टस ; जिसने जूलियस सीजर द्वारा अपने नाम के महीने में, जूलियन कैलेंडर के ३० दिनों के महीनों वाले आखिरी महीने फरवरी से एक दिन लेकर उसे २९ दिन और जुलाई को ३१ दिन का बनाया था - - - - अपने को महान घोषित करने के लिए अगस्त महीने को भी ३१दिन का बना दिया और फरवरी को २८ दिन का !! 
हर बार की तरह इस बार भी मेरे मन ने वही यक्षप्रश्न दोहराया ," हम भारतवंशी कब तक चार महीने बाद आनेवाले अंग्रेजी(ईसाई ) नववर्ष पर शुभकामनाएँ देते रहेंगे ? मैं भारत पर हुए औपनिवेशिक "सांस्कृतिक आक्रमण" को राजनैतिक आक्रमण से बड़ा मानती हूं इसलिए अरेबिक अंकों आदि आरोपित अन्य बातों की तरह "न्यू ईयर" भी स्वतंत्र भारत की अस्मिता पर प्रश्न चिन्ह सा लगता है- - - -? 
प्रकृति के नव-सृजन को, सृष्टि के नव- निर्माण को.... नव-पल्लवों की कोमल हथेलियों पर रचकर, अमराईयों में कूकती कोयल की तान में बसकर.... नव-उल्लास, नव-आशा, नव-जागरण की पावन ज्योति जगत के कण-कण में जगाने वाले भारतीय - नववर्ष में हमारी उत्सवधर्मी संस्कृति जीवंत हो उठती है। एक सत्य और है - - - - हम भोर के उजालों भरी पावन वेला में भारतीय नववर्ष मनाते हैं अर्द्धरात्रि में नहीं! 
सच बात यह है कि मैं हिमाचल प्रदेश की बेटी हूं इसलिए बचपन से ही "विषु-साज्जे" , अर्थात बैसाखी को नववर्ष मनाती आई हूं।बंगाल में इस दिन को ‘नाबा वैशाख’ या ‘पौला बौशाख’,  केरल में ‘विशु’, असम में ‘‘बोहाग बिहू’, पंजाब में ‘बैसाखी ’, उड़ीसा में ‘पाना संक्रांति’, तमिलनाडु में ‘पुथांडु ’, बिहार में ‘सतुआनि’ और ‘जुड़ी शीतल’ के नाम से मनाया जाता है।
विक्रमी संवत का चैत्र का महीना है जो समस्त भारतीय जनमानस के लिए शुभता का प्रतीक है, हमारे **** भारतीय सौर पंचांग, विक्रम संवत् का पहला महीना है जिसे न केवल देश भर में, बल्कि इस उपमहाद्वीप के बाहर बाली, थाईलैंड आदि देशों में भी नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। राशि चक्र की पहली राशि मेष में सूर्य के प्रवेश के साथ आरंभ चैत्र में एक नई ऋतु का आगमन होता है।मेरा मानना है कि यह मास हमारी कृषि प्रधान परंपरा का ऊर्जस्वी प्रतीक भी है इसीलिए इस मास में शक्ति की पूजा होती है जो मनुष्य की अंतर्निहित चेतना को जाग्रत और अभिव्यक्त करने वाली पराशक्ति भगवती दुर्गा का नमन करने की हमारी चिरंतन संस्कृति का परिचायक है। हमारा भारतीय नववर्ष, धरती के प्रकृति द्वारा किए गए श्रृंगार से सजे इसी महीने से प्रारंभ होता है।
इसके विपरीत अंग्रेज़ी महीने, काल गणना पर कम और व्यक्तिगत अहंकार की तुष्टि से अधिक जुड़े हैं।  ३१दिन वाले जूलियस सीज़र के नाम के महीने के एकदम बाद आगस्टस नें, अपने नाम वाले महीने में भी ३० की जगह ३१ दिन कर दिए। पोप ग्रेगेरियन (रोम के १३वें पोप) नें तो तब प्रचलित जूलियन कैलेंडर के ईसवी सन् १५८२ में नेपुलस् के ज्योतिषी एलाय सियस लिलियस (Aloysitus lilius) के परामर्श से १५८२ ईस्वी में ५ अक्टूबर को (१० दिन जोड़कर), अक्टूबर की १५ वीं तिथि घोषित कर, निश्चित किया। इस तरह कैलेंडर में १० दिन जोड़ कर अर्थात सन् १५८२ के वर्ष से १० दिन गायब कर - - - - वर्तमान वाला ईसाई कैलेंडर चलाया गया ?
 इस नवीन पद्धति (नये कैलेंडर) को ईसाई धर्मावलंबी राष्ट्रों नें अलग - अलग वर्षों में अपनाया----
 १५८२ ई. में इटली, फ्रांस, स्पेन और पुर्तगाल नें ! प्रशिया, जर्मनी के रोमन कैथोलिक प्रदेश स्विट्जरलैंड, हॉलैंड और फ़्लैंडर्स ने १५८४ ई॰ में!
पोलैंड ने १५८६ ई॰ में!
हंगरी ने १५८७ ई॰ में!
जर्मनी और नीदरलैंड के प्रोटेस्टेंट प्रदेश तथा डेनमार्क ने १७०० ई॰ में !
ब्रिटिश साम्राज्य ने १७५२ ई॰ में,
जापान ने १९७२ ई॰ में !
चीन ने १९१२ ई॰ में! बुल्गारिया ने १९१५ ई॰ में! तुर्की और सोवियत रूस ने १९१७ ई॰ में !
 युगोस्लाविया और रोमानिया ने १९१९ ई॰ में अपनाया।
इन ईसाई देशों में से साम्राज्यवादी शक्तियों नें जहां भी अपने उपनिवेश स्थापित किए, उन देशों पर अपना कैलेंडर ज़बरदस्ती लाद दिया !!!!
वैज्ञानिक पद्धति के भारतीय पंचांग को दरकिनार कर, एक नहीं कई विसंगतियों से भरा ये नववर्ष , भारत में भी कंपकंपाती ठंड से शुरू होता है- - - - ये ग्रैगेरियन कैलेंडर का "न्यू ईयर "!! 
आइए,  ज़रा सेप्टेंबर से दिसंबर  तक के अंकों की गणना अर्थात गिनती भी कर लें ।
सितंबर (लैटिन सेप्टम से, "सात") या सितंबर मूल रूप से (प्राचीन "रोमन कैलेंडर" जो दस महीनों का था) में सातवां था। प्राचीन "रोमन कैलेंडर" भी विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों की तरह मार्च माह, मार्शियस से शुरू हुआ था (मंगल के महीने) " 
-ऑक्टो, रोमन "आठ" के लिए। "नौवेम, रोमन के लिए "नौ और दिसंबर का नाम डेसेम से आया है। लैटिन "दस" के लिए प्रयुक्त होता है। 
(September (from Latin septem, "seven") or September was originally the seventh of ten months. On the ancient "Roman calendar" that began with March Martius, "Mars' month".
-octo, Latin for “eight. "novem, Latin for “nine. December's name come from decem, Latin for “ten."-) 
इस प्रकार ग्रेगेरियन कैलेंडर के नवें, दसवें, ग्यारहवें और बारहवें महीने के लिए प्रयुक्त होने वाले नाम, अपने वास्तविक अर्थो में सात, आठ, नौं और दस अंक हैं।  अर्थात बारहवें को दसवां महीना बताकर बने बारह महीनों के कैलेंडर को हमनें अपने ज्योतिष की प्रामाणिक गणनाओं, सूर्य-चंद्र व राशियों पर  आधारित (पंचांग) अर्थात भारतीय कैलेंडर के स्थान पर क्यों अपनाना चाहते  हैं ? - - - - सिवाय  औपनिवेशिकता के कारण थोपे गए प्रभाव के अतिरिक्त ? 
पर हम सब जानते हैं कि किसी भी सत्य को जानने, तथ्य को मानने और - - - - कार्यरूप में बदलने में 🙄 बहुत बड़ा अंतर होता है। 
जनवरी में कैलेंडर बदलने की परंपरा हमारे स्वाधीन भारतवर्ष से हट जाती तो !!!! - - - - मेरा निजी दृष्टिकोण यह है कि खुशियों के लिए द्वार बंद करने की परंपरा हमारी संस्कृति में सिखाई ही नहीं जाती परंतु अपनी संस्कृति व वैज्ञानिक विरासत के प्रति हमारी निष्ठा अक्षुण्ण रहनी चाहिए। 🙏💐
भारतीय जनमानस द्वारा स्वीकृत विक्रम संवत ही भारतीय पर्व-त्यौहारों व शुभ-अशुभ ज्योतिषीय गणनाओं का आधार है। परंतु जाने किस वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण संवैधानिक रूप से शक संवत को अपनाया गया। 
सत्य यह है कि भारतीय विक्रम संवत ईसवी सन्  से ५७ वर्षों का अंतर लिए है । इस समय ईसवी सन् २०२०और विक्रम संवत २०७७ चल रहा है और - - - - शक संवत ७८ वर्ष पीछे है, २०२० - ७८ = १९४२ इस प्रकार अभी शक संवत १९४२ चल रहा है। स्वयं को अंग्रेजों से कमतर करके आंकने वाली मानसिकता भारतीय जनमानस की इच्छाओं का सम्मान नहीं कर रही है। 
काश ! संवैधानिक स्वीकृति के साथ कार्यरूप में जनवरी में कैलेंडर बदलने की परंपरा हमारे स्वाधीनता के इस महीने में बदल पाती !! 
 - - - - हम कब तक तीन नववर्ष मनाऐंगे ? खुशियों के लिए द्वार बंद करने की परंपरा अपनी संस्कृति में सिखाई जो नहीं जाती शायद - - - - इसलिए  अनापेक्षित - आपेक्षित - - - - सब स्वीकार करते जाते हैं। 
                🙏स्वर्णअनिल🌷🌷🌷🌷

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