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गुरुवार, 16 नवंबर 2023

🔱 भारतीय सांस्कृतिक अस्मिता का पर्व : नागुला चाविथि।

🔱 कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को दक्षिण भारत में श्रद्धापूर्वक मनाए जाने वाले पर्व नागुला-चाविथि (नाग-चतुर्थी ) की शुभेच्छाएँ 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
" सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।
ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः॥
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः।
ये च वापीतडगेषु तेषु सर्वेषु वै नमः।।"
भारतीय संस्कृति में नागवंश का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। नागों का वेद, पुराण, उपनिषदों, रामायण, महाभारत आदि में देवताओं के रूप में मान्यता है। भारतीय परंपरा में नाग-पूजा का प्रचलन आदिकाल से रहा है। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और सरस्वती-सिंधु सभ्यता की खुदाई में प्राप्त प्रमाणों से पता चलता है कि उस काल में भी नागों की पूजा होती थी।
 आदिदेव भगवान आशुतोष का आभूषण नाग देवता हैं। श्री हरि नारायण /श्री विष्णु शेषशैय्या पर विराजमान रहते हैं। रामायण में विष्णु भगवान के अवतार श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मण और महाभारत के श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम को शेषनाग का अवतार माना गया है।  
 उत्तर भारत में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की पंचमी नाग पंचमी के पर्व के रूप में मनाई जाती है और दक्षिण भारत के आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु के कई भागों में   "नागुला चाविथि" (नाग चतुर्थी ) मनाई जाती है।
 नाग देवताओं की पूजा करने के लिए " नागुला चाविथी" पर्व को कार्त्तिक माह में दीपावली वाली अमावस्या के चौथे दिन मनाया जाता है। नौ नाग देवता- अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबाला, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिया आदि नागों की इस दिन विशेष पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अमृत की खोज में देवताओं और दानवों द्वारा सागर- मंथन के समय जब वासुकी को एक बड़े रस्सी के रूप में प्रयुक्त किया गया था। इस प्रक्रिया में हलाहल विष निकला। इस भयावह विष का मारक प्रभाव संसृति को समाप्त कर सकता था अतः सबकी प्रार्थना पर भगवान आशुतोष ने आज के ही दिन, लोक कल्याण के लिए हलाहल पी लिया। विष को कंठ में धारण करने के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया। भगवान शिव का यह विषपायी स्वरूप  "नीलकंठ" के रूप में जाना जाता है। विषपान करते समय हलाहल की कुछ बूंदें धरती पर गिर गईं। विष (जहर) के हानिकारक प्रभावों को रोकने के लिए, संताप को शांत करने और हानिकारक प्रभावों से खुद को बचाने के लिए, देव-दानव व मानवों नें नागों की पूजा करना शुरू कर दी। नागों नें सबकी प्रार्थना स्वीकार कर ब्रह्मांड पर छाए संकट के निवारण हेतु कालकूट को पी लिया। सबने नागों की सभी प्रजातियों के लिए कृतज्ञता प्रदर्शित करते हुए कार्त्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को उत्सव का स्वरूप दिया।
कार्तिक मास की  दीपावली वाली अमावस्या के चौथे दिन "नागुला चाविथि" मनाई जाती है। नगुला चविथी नाग देवताओं (नाग देवताओं) की पूजा करने का त्योहार है जो मुख्य रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा संतति के कल्याण की कामना से मनाया जाता है।
" अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शङ्ख पालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा॥
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्॥"
प्रकृति तभी जीवित और फलती-फूलती है जब संतुलन हो। चूहे कृंतक हैं जो पारिस्थितिकी तंत्र में एक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। 
प्रकृति संरक्षण की दृष्टि से देखें तो प्रकृति का हर तत्व तभी जीवित रहता है। सकल चराचर तभी फलता-फूलता है जब उचित संतुलन हो। पारिस्थितिक तंत्र में चूहे भी एक उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।परंतु उनकी  अधिकता घातक बीमारियों की वाहक भी बन जाती हैं और कृषि प्रधान देश में फसलों के विनाश का कारण भी। इससे बचने के लिए प्रकृति में चूहों की आबादी को संतुलित रखने के लिए सर्पों का विशेष योगदान है।  नागुला चाविथी हमारे कृषि प्रधान देश के जन समुदाय द्वारा सभी सांपों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने वाला अवसर भी है और भारत की सांस्कृतिक विरासत की पमुख घटना " समुद्र - मंथन " में अमृत के साथ उपजे प्रलयंकारी हलाहल को निष्क्रिय करने में भगवान नीलकंठ के सहयोगी बनी नाग जाति के प्रति आस्था व विश्वास अर्पित करने का पावन पर्व भी। शुभकामनाएँ 🙏
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷डॉ स्वर्ण अनिल ।

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