प्यार के इन्द्रधनुषी रंगों से ,श्रद्धा के कोमल पराग से सजाई रंगोली के मध्य
निरंतर प्रकाशित - अकम्पित दीप सा कुछ है - हमारे -तुम्हारे बीच !!
बचपन की निश्छल हंसती आँखों सा ,मित्रता के अटूट विश्वास सा ,
सुहागन की मांग के सिन्दूर सा दमकता- कुछ है - हमारे -तुम्हारे बीच !!
ये जो तुम को हमारे लिए - हमको तुम्हारे लिए कितने नातों में ढालता रहा,
कभी शिशु कभी प्रौढ़ , कभी सखा कभी सहचर,कभी गुरू कभी शिष्य कभी पूज्य कभी पूजक बनाता, निरंतर विकसित होता ये सम्बन्ध !
सच कहो - समाज के दिए किसी एक नाम से क्या परिभाषित हो पायेगा ?
ये जो शब्दातीत सा - अनबूझा सा -अनाम कुछ है - हमारे तुम्हारे बीच !!
1 टिप्पणी:
nirantar viksit hota sambandh sachmuch shabdateet hota hai .
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