होती है तारीफ़ अहमियत की,
इंसानियत की मगर कद्र होती है।
तरजीह मत दे इंसानियत पर ओहदे को,
बंदे पर ख़ुदा की नज़र होती है।
******** (धर्मेन्द्र जी।)
जीवन की भागदौड़ में ,अपना सबकुछ पीछे छूट जाता है। पत्नी-माता-कार्यक्षेत्र के दायित्व निभाने में 'अपनाआप' कहीं किसी बंद अटैची में रखे पुराने चित्रों सा दबा रह जाता है। - - - -
इंद्रधनुषी समय के वे चलचित्र ,जिन पर हमने सबसे पहला नाम ,बचपन में अनजाने ही "धर्मेंद्र जी" लिख लिया था। कारण था १९६२ का भारतपर थोपा गया चीनी युद्ध।उस युद्ध में सरकारी उदासीनता से उपजी सैनिकों के कष्टों व विभीषिकाओं को हमने हिमाचल प्रदेश के सैनिकों से लगभग ९ वर्ष की आयु में अपने घर आए भाई जी से सुना था और उन स्मृतियों को
१९६४ में आई "हकीकत "फिल्म में जीवन्तता देखा। ---- देश की सीमाओं की सुरक्षा में लद्दाख के असंवेदनशील प्रकृति में देश के लिए प्राण न्यौछावर करते , सौंदर्य और संवेदनशील धर्मेंद्र जी की छवि हमारे बालमन पर गहरी अंकित हो गई। सुरक्षा सेनाओं से जुड़े पिता, चाचा, जीजा, भाई वाले पराजयों के परिवार में वर्दी के लिए आत्मीयता ने इसे और बढ़ाया।
इसके बाद विद्यालय से (वर्तमान -बुद्ध जयंती पार्क)बुद्धा गार्डन पिकनिक पर गए तो एयरफ़ोर्स की वर्दी में नीला आकाश (१९६५) की शूटिंग करते धर्मेंद्र जी को निकट से देखा-सुना तो - - - - वे हमारे मनपसंद "हीरो" हो गए। उसके बाद किसी भी पत्र-पत्रिका मे छपे धर्मेंद्रजी के चित्र इकट्ठे करना हमारी अभिरुचि बन गया था -- - - हमारी नीचे रंग कीअटैची ,जो हमें विद्यालय की स्क्रैप-फाईलों के लिए फूल- पत्तों व आवश्यक सामग्री रखने के लिए दी गई थी वो केवल 'हमारे हीरो' के चित्रों से भर गई थी। घर-बाहर सब जानते थे। आज भी याद आता है कि 'अनुपमा' के लिए हुए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में पिताजी को जाते देख , हमारे भीतर पिए गए मौन आँसुओं को पिताजी नें समझा और हमें भी समारोह में साथ ले गए थे।
फूल और पत्थर, सत्यकाम, आदमी और इंसान - - - - आदि परिवार के साथ देखी। लेडी श्रीराम कॉलेज में पड़ते समय घर पर आई एक सहेली नें हंसते हुए माँ से कहा कि " अम्मा इसे गुड्डी ज़रूर दिखाना इस पर ही बनी है। " - - - - सच में उस वक्त बहुत हैरानी हुई थी कि हमारी बातें फ़िल्म वालों को कैसे पता चली !! ढेरों यादें हैं !!
१ नवंबर २०२५को अस्पताल में भर्ती होने पर लगा कि ८ दिसंबर को अपना जन्मदिन अवश्य मनाऐंगे - - - - १२को लौटे तो आस बंध गई थी- - - - पर - - - - २४ नवंबर को ---- सब समाप्त हो गया। अपनी कला और व्यक्तित्व के गुणों से जनसाधारण के सर्वप्रिय अभिनेता, लोकसभा सांसद के रूप में राष्ट्र सेवक और फिल्म अभिनेता, निर्देशक, निर्माता के रूप जनमाना में अपनी विशिष्टताओं का लोहा मनाने वाले सुन्दर. सौम्य, संवेदनशील धर्मेंद्रजी को, अशेष श्रद्धांजलि एवं कोटिश नमन....🖊