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शुक्रवार, 7 मार्च 2025

#अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस


#अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 🌺
मैं मानती हूं कि महिला दिवस के 'आयातित तथाकथित विमर्शों ' का  भारतीय संदर्भ में विचार करते समय, हमें भारत की सामूहिक चेतना पर भी विचार करना होगा जो हमारे उस मनोवैज्ञानिक इतिहास को बनाती है जिसकी जड़ें, जाने- अनजाने चिरंतन शक्ति के रूप में हम सब में प्रतिष्ठित रहती हैं। हमारी सामूहिक चिति अपने आदि पुरुष के रूप में स्वयंभू मनु और आदि नारी के रूप में शतरूपा को स्वीकारती आई है।प्रजापत्य कल्प के "स्वयंभु मनु और शतरूपा " ही मानव संतति के आदि- जनक और आदि-जननी कहलाते हैं। स्वयंभु मनु एवं शतरूपा नें सहस्त्रों वर्षों तक तपस्या की और फिर ईश्वर के निर्देश पर उस मैथुनी सृष्टि को जन्म दिया जिसकी परंपरा में हम सब मानव कहलाए। अपने पुत्र-पुत्रियों को जन्म देने के बाद, उनको सामाजिक व राष्ट्रीय दायित्व वहन करने की कुशलता देने के बाद, वे दोनों पुनः तपस्या में तल्लीन हो गए । हमारे आदिजनक
 मनु और आदिजननी शतरूपा दोनों; समान  दैहिक, मानसिक और आध्यात्मिक योग्यताओं से परिपूर्ण थे। वे समान धरातल पर प्रतिष्ठित ऐसे युगल हैं जिनको वेदज्ञान (ब्रह्म) के ज्ञाता (ब्रह्मा)होने के कारण ठीक वैसे ही ब्रह्मा की साकार रचना माना गया जैसे हम आज तक विवाह 
 के समय वर-वधु को उमा-शंकर या सीता-राम मानते आ रहे हैं। 
आज का संचार क्रांति के युग में हमारी जागृत नई पीढ़ी, भारत पर हुए सांस्कृतिक आक्रमणों, उपनिवेशवाद की जातिगत हीनता के प्रचारित षडयंत्रों का सत्य जान चुका है !! इसीलिए विश्व वेदों की वैज्ञानिक स्वरूप को स्वीकार रहा है।ज्ञान-विज्ञान की नई खोजों नें वेदों में वर्णित कई सत्यों को प्रमाणित किया है।
विस्तार में ना जाकर मैं इतना ही कहूंगी "संस्कृत" की 'मह्' धातु से बने शब्द 'महिला' को लेना चाहिए जिसमें वैदिक  युग की छाया स्पष्ट दिखाई देती है। तब देश में ऐसी सामाजिक व्यवस्था थी कि सम्मान, आदर, महत्ता,श्रद्धा और महत्वपूर्ण - - - - जैसे भाव महिलाओं से स्वतः ही जुड़े हुए थे। भारतीय परिप्रेक्ष्य में "महिला" की बात करते हुए मेरा मन सदा भारतीय अतीत के उस राजमार्ग पर जाकर खड़ा हो जाता है जहाँ हर मील के पत्थर पर स्वर्णाक्षरों में कई महिलाओं के नाम लिखे दिखाई देते हैं।आज के समय में भी कई बुद्धिजीवियों द्वारा,भारतीय महिलाओं की स्थिति को लेकर, सत्य जाने बिना भारतीय संस्कृति पर ही दोषारोपण किया जाता है। भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति को दिव्य एवं श्रेष्ठ माना गया है यही कारण है कि भारतीय आदिग्रंथ ऋग्वेद , 'आप: मातरम्' से शुरू होता है। सरस्वती माता,गंगामाता,भारतमाता धरतीमाता जैसे शब्द सम्पूर्ण विश्व में केवल यहीं प्रयोग में आते हैं। वैदिक काल से यहां देवी की उपासना हुई है। अपनी  सांस्कृतिक परंपरा में महिला संबंधी सत्य को जानने के लिए यदि हम केवल वैदिक काल के 'ऋग्वेद' को ही देखें तो उसमें २६ ऋषिकाओं द्वारा रचित ऋचाएं हैं। - - - - और ऋषिका सूर्यासावित्री द्वारा रचित विवाह मन्त्रों को हम वैदिक काल से वर्तमान तक विवाह संस्कार के समय पढ़ते आ रहे हैं। वर-वधु  विवाह के समय सप्तऋषि मंडल के  वशिष्ठ-अरुंधती (पति-पत्नी) को देखकर दाम्पत्य जीवन में सफलता का आशीर्वाद पाते हैं - - - - इस सफलता का आधार इस वैज्ञानिक सत्य पर टिका है कि आकाश में ये दोनों एक दूसरे के आगे-पीछे नहीं साथ-साथ चलते हैं।---- जहाँ समानता है वहाँ सम्मान भाव स्वयं विद्यमान है। मैंने भारतीय संस्कृति के महिला विषयक केवल एक पक्ष का संक्षिप्त उदाहरण देकर भारतीय महिला दिवस के वैशिष्ट्य को सामने लाने का प्रयास इस आशा के साथ किया है  कि (३० मार्च २०२५) चैत्र मास से प्रारम्भ होने वाले भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत)जिसका  शुभारम्भ हम, वासंतिक नवरात्रि के शैलपुत्री पूजन से कर उनके सिद्धिदात्री स्वरूप से करते हैं - - - - उस समय
 यदि हमारी युवा पीढ़ी संगठित होकर अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं के सुन्दर,अनुकरणीय विचारों को युगानुकूल बना कर अपनाने का संकल्प लें तो एक दिन महिला दिवस मनाने की जगह, समाज का व्यवहार भारतीय मूल्यों की समरसता को पा लेगा - हार्दिक शुभेच्छाओं सहित यही कहूंगी - - - -
 महिला दिवस /भारतीय  संदर्भ । 📖🖊️ 
अर्द्धनारीश्वर का समता दर्शाता भारतीय स्वरूप, 
शक्ति और शिव की जागृत ऊर्जा भरा रूप अनूप, 
 जब दशभुजी अम्बा कहलाती अनादि ब्रह्मरूप, 
तब हर नारी कहलाएगी उसी का प्रारूप, 
जन-जन में समादृत होगा जब यही सनातन रूप, 
तभी फैलेगी सर्वत्र शाश्वत चेतना की स्वर्णिम धूप !! 
🌺🌺🌺🌺🌺   स्वर्णअनिल।

बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

१६ अक्तूबर की ठहरी हुई साँझ !!

🌷कलाऋषि अमीरचंद भाईजी की अमिट स्मृतियों को अश्रुपूरित श्रद्धासुमन 🌷🙏
१६ अक्तूबर   !!!! 
समय की सारी तेज़ रफ़्तार इस दिन ठहर जाती है ! हम अरुणाचल के युद्ध स्मारक, न्युकमादोंग पहुंच कर देखते हैं---- १९६२ के वीर योद्धाओं को समर्पित युद्ध स्मारक में श्रद्धेय अमीरचंद भाई जी परंपरागत श्रद्धाँजलि पूजन कर रहे हैं ।  भावविह्वल से हम और भाई जी ६माह पहले स्वर्गगामी आदरणीय बिमल भाई जी एवं "सरहद को स्वरांजलि" कार्यक्रम को याद कर रहे हैं - - - - फिर सारे शब्द खो गए और कानों में गूंजते हैं बस वही शब्द - "मुझे ऐसा लग रहा है जैसे नवंबर २०१३ को इटानगर में हुए स्वरांजलि के कार्यक्रम की पूर्णाहुति आज की श्रद्धाँजलि पूजा से पूरी हुई है। स्वर्ण जी, मन की बात बताऊं! मुझे आज पूर्ण तृप्ति का आनंद अनुभव हो रहा है। "
इस पूर्ण तृप्ति के आनंद को सहेज कर पापांकुशा एकादशी की संध्या को जो मौनव्रत भाईजी नें धारण किया उसे ना तो हम आँखों के सामने सब होता देख कर स्वीकार पाए थे ना ही अब स्वीकार कर पा रहे हैं। आज शरद पूर्णिमा है बार-बार लग रहा है कि फ़ोन आएगा और
भाईजी कहेंगे " आप तो खीर बनाएंगी पर हम दिल्ली में नहीं हैं।" जवाब में हम अपनी भीगी आँखें लिए मन में दोहरा रहे हैं -अपनी शुगर का ध्यान रखिए भाईजी। 
सच में, आपको डांटने की आदत का क्या करें ? महर्षि वाल्मीकि, कुल्लू दशहरा, कोजागरी पर बातचीत, चर्चा - - - -  सब पर मौन ही छा गया है। भाईजी आप तो भूल गए पर हमें बहुत याद आते हैं। एक गहरा शून्य सा घिर आया है - - - -