🌷कलाऋषि अमीरचंद भाईजी की अमिट स्मृतियों को अश्रुपूरित श्रद्धासुमन 🌷🙏
१६ अक्तूबर !!!!
समय की सारी तेज़ रफ़्तार इस दिन ठहर जाती है ! हम अरुणाचल के युद्ध स्मारक, न्युकमादोंग पहुंच कर देखते हैं---- १९६२ के वीर योद्धाओं को समर्पित युद्ध स्मारक में श्रद्धेय अमीरचंद भाई जी परंपरागत श्रद्धाँजलि पूजन कर रहे हैं । भावविह्वल से हम और भाई जी ६माह पहले स्वर्गगामी आदरणीय बिमल भाई जी एवं "सरहद को स्वरांजलि" कार्यक्रम को याद कर रहे हैं - - - - फिर सारे शब्द खो गए और कानों में गूंजते हैं बस वही शब्द - "मुझे ऐसा लग रहा है जैसे नवंबर २०१३ को इटानगर में हुए स्वरांजलि के कार्यक्रम की पूर्णाहुति आज की श्रद्धाँजलि पूजा से पूरी हुई है। स्वर्ण जी, मन की बात बताऊं! मुझे आज पूर्ण तृप्ति का आनंद अनुभव हो रहा है। "
इस पूर्ण तृप्ति के आनंद को सहेज कर पापांकुशा एकादशी की संध्या को जो मौनव्रत भाईजी नें धारण किया उसे ना तो हम आँखों के सामने सब होता देख कर स्वीकार पाए थे ना ही अब स्वीकार कर पा रहे हैं। आज शरद पूर्णिमा है बार-बार लग रहा है कि फ़ोन आएगा और
भाईजी कहेंगे " आप तो खीर बनाएंगी पर हम दिल्ली में नहीं हैं।" जवाब में हम अपनी भीगी आँखें लिए मन में दोहरा रहे हैं -अपनी शुगर का ध्यान रखिए भाईजी।
सच में, आपको डांटने की आदत का क्या करें ? महर्षि वाल्मीकि, कुल्लू दशहरा, कोजागरी पर बातचीत, चर्चा - - - - सब पर मौन ही छा गया है। भाईजी आप तो भूल गए पर हमें बहुत याद आते हैं। एक गहरा शून्य सा घिर आया है - - - -